भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जलझूलनी एकादशी कहा जाता हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी व डोल ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा जन्म के बाद होने वाला मांगिलक कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह एकादशी 2 सितंबर, शनिवार 2017 को है। इस वृत को करने से जातक को वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जब कोई व्यक्ति अपने प्रतिस्पर्धियों में सबसे आगे निकलना चाहता है। सम्राट के समान उपाधि प्राप्त करना चाहता है तो इस मनोकामना पूर्ति के लिए वाजपेय यज्ञ किया जाता है।
डोल ग्यारस व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो कर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
वाजपेय यज्ञ के बारे मेें
वाजपेय यज्ञ का विशिष्ट धार्मिक एवं वैदिक महत्व है। यह सोमा यज्ञों का सबसे महत्वपूर्ण है। यज्ञ आमतौर पर उच्च स्तर और बड़े पैमाने पर किया जाता है। भारतीय इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि सवाई जय सिंह ने कम से कम दो यज्ञ प्रदर्शन किये जो कि वैदिक साहित्य में "वाजपेय" तथा "अश्वमेध" नामों से वर्णित हैं। 'ईश्वरविलाश महाकाव्य' के अनुसार 'जय सिंह प्रथम वाजपेय यज्ञ किया और "सम्राट" सम्राट उपाधि धारण की। आधुनिक भारत में बाजपेयी लोगों ने अभिनय शिक्षा, साहित्य, कूटनीति, राजनीति में महत्वपूर्ण सम्मान अर्जित किया है।
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो कर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
वाजपेय यज्ञ के बारे मेें
वाजपेय यज्ञ का विशिष्ट धार्मिक एवं वैदिक महत्व है। यह सोमा यज्ञों का सबसे महत्वपूर्ण है। यज्ञ आमतौर पर उच्च स्तर और बड़े पैमाने पर किया जाता है। भारतीय इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि सवाई जय सिंह ने कम से कम दो यज्ञ प्रदर्शन किये जो कि वैदिक साहित्य में "वाजपेय" तथा "अश्वमेध" नामों से वर्णित हैं। 'ईश्वरविलाश महाकाव्य' के अनुसार 'जय सिंह प्रथम वाजपेय यज्ञ किया और "सम्राट" सम्राट उपाधि धारण की। आधुनिक भारत में बाजपेयी लोगों ने अभिनय शिक्षा, साहित्य, कूटनीति, राजनीति में महत्वपूर्ण सम्मान अर्जित किया है।