
कमलनाथ ने शुक्रवार को अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में थे। यहां कमलनाथ का मीडिया मैनेजमेंट चलता है। प्रेस कांफ्रेंस में यहां पत्रकार अपने मन से सवाल नहीं पूछते। केवल वही सवाल पूछे जाते हैं जिनका इशारा मिल चुका होता है या फिर जिनको सुनकर कमलनाथ खुश हो जाएं। कहा जाता है कि ऐसे पत्रकार जो तीखे सवाल पूछते हैं कमलनाथ की प्रेस कांफ्रेंस में आमंत्रित ही नहीं किए जाते।
कमलनाथ की दावेदारी के बेतुके आधार
दरअसल, कमलनाथ की दोवदारी के आधार ही बेतुके थे। उन्हे ही सीएम कैंडिडेट क्यों घोषित किया जाए इसके पीछे कुछ इस तरह के तर्क दिए जा रहे थे:
क्योंकि वो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं।
क्योंकि कांग्रेस की गुटबाजी में वो सबको साथ लेकर चल सकते हैं।
क्योंकि उनके पास बहुत सारा पैसा है। चुनावी खर्चों में पीछे नहीं हटेंगे।
क्योंकि वो चुनाव मैनेजमेंट में माहिर हैं। आज तक कभी नहीं हारे।
क्योंकि उनकी उम्र हो गई है, इसके बाद उनके पास दूसरा अवसर नहीं रहेगा।
दरअसल, कमलनाथ की टीम में अच्छे बुद्धिजीवियों की भी काफी कमी है। वो एक बार भी यह प्रमाणित करने का प्रयास नहीं कर पाए कि किस तरह कमलनाथ, भाजपा के शिवराज सिंह चौहान पर भारी पड़ सकते हैं। कमलनाथ खुद सारे चुनाव जीते परंतु अपने समर्थकों को चुनाव जिताने का रिकॉर्ड काफी खराब है। सीएम कैंडिडेट वो होना चाहिए जिसके नाम पर विधायकों को भी वोट मिल जाए। कमलनाथ के पंडित यह भी साबित नहीं कर पाए कि वो आम जनता को किस तरह से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि ऐसा कोई उदाहरण है ही नहीं, जबकि कमलनाथ ने आम जनता को प्रभावित करके परिणाम बदलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। हालांकि भोपालसमाचार.कॉम की टोकाटाकी के बाद कमलनाथ ने शिवराज सरकार पर हमला करना जरूर शुरू कर दिया है परंतु यह प्रेक्टिस काफी देर से शुरू की गई है। निश्चित रूप से यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगी परंतु चुनाव जिताने के लिए काफी तो फिलहाल पूरी कांग्रेस के पास ही मटीरियल नहीं है। सारे के सारे मप्र में उठ रही शिवराज सिंह विरोधी लहर पर सवार होकर सत्ता तक पहुंचने का प्लान बना रहे हैं।
अब सवाल यह है कि कमलनाथ का ताजा बयान हाईकमान से मिले संदेश के कारण आया है या फिर वो 'खेल नहीं पाए तो खेल बिगाड़ेंगे' की तर्ज पर काम कर रहे हैं।