
अब सरकारी प्रयास। जैसे सरकार असम में बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मपुत्र की गाद निकालने की योजना बना रही है। यह योजना अव्यावहारिक भी है और अनावश्यक भी। ऐसा करने से हमारा और अधिक समय जाया होगा। बिहार में सरकार नदियों के किनारे तटबंध बनाकर यही काम करना चाहती है। बिहार की कोसी नदी शायद देश की एकमात्र ऐसी नदी है जिसे लोग अभिशाप भी मानते हैं और वरदान भी। इस वर्ष की बाढ़ से बिहार में 300 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और एक करोड़ से अधिक लोग परेशान हैं। यह आंकड़ा मामूली नहीं है। यह भी याद रखिए कि हर बाढ़ और हर सूखे के साथ गरीब आदमी परेशान होता है।
बाढ़ प्रभावित इलाकों में बाढ़ से निपटने के उपाय दशकों से आजमाए जाते रहे हैं। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि व्यवस्थित योजना बनाई जाए जो पानी को इस प्रकार राह दी जाए कि वह जमीन पर न फैले और लोगों की जान न ले। इसके लिए नदियों को तालाबों, झीलों आदि से जोडऩा आवश्यक है। इससे पानी पूरे इलाके में बंट जाएगा और दूसरी तरह के लाभ हमारे लिए लाएगा। इससे भूजल भी रीचार्ज होगा और कम वर्षा वाले दिनों में हमें पीने और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा। बाढ़ एवं सूखे को नियंत्रित करने का एकमात्र हल है - लाखों की तादाद में ऐसी संरचना का निर्माण जो बारिश का पानी रोकें तथा बाढ़ की आशंकाओं को कम करें। इस पानी को सूखे के समय प्रयोग किया जा सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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