
मध्यप्रदेश में बालाघाट सर्वाधिक वनों से अच्छादित वाला जिला है जिसके 52 प्रतिशत भू-भाग पर घनेजंगल लगे हुये है। घने जंगलों से बहुत प्रकार की वनोपज भी उपलब्ध होती है जिनसे जंगलों आसपास निवास करने वाले आदिवासियों के जीवनयापन और रोजगार का प्रमुख आधार बनी है। बालाघाट जिलों के जंगलों से ईमारती जलाउ लकडी उत्कृष्ट किस्म का बांस तथा वनोपज के रूप में महुआ, शहद, चारबीजी, चिरौटा के बीज, तेंदूपत्ता, मुसली, बेचांदी, तीखूर सहित अनेक औषधियां साल वृक्ष से निकलने वाली गोंद जिसे राल कहा जाता है बहुतायत उपलब्ध होती है जो वनों में रहने वाले आदिवासियों के रोजगार का साघन बनी है।

बालाघाट से बैहर मार्ग पर सडक के किनारे पिहरी बेचने वाले की बहुतायत दिखाई देती है। पिहरी बेचने वालों से हुई चर्चा के अनुसार पिहरी सिर्फ बालाघाट के शहरी इलाकों में ही नही समीपवर्ती तुमसर, गोदिया एवं नागपुर तक बिकने जाती है। नागपुर में यह 500 रूपये प्रतिकिलोग्राम की दर पर बिकती है। जिले के बैहर तथा लांजी में यह बहुतायत में बिकने आ रही है इन दिनों आदिवासी के लिये यह रोजगार का प्रमुख साधन बना हुआ है। आदिवासी इससे संग्रह करने के लिये बडे सबेरे जंगल पहुच जाते है और बांस के झूरमुट से इसका संग्रह करते है। पिहरी बांस के पिडों के नीचे पत्तीयों तथा अन्य वनस्पतियों की सडन के कारण एक विशेष प्रकार के सुक्ष्म जीवों द्वारा बनाई जाती है। बरसात के दिनों में इसकी उपलब्धता लगभग 1 माह तक रहती है।शाकाहारी, मांसाहारी इसे लजीज सब्जी के रूप में पंसद करते है।