
यहां दो ऊंची चट्टानें हैं। एक में गोल-मटोल ललितासन मुद्रा में गणेश प्रतिमा है। वहीं दूसरे शिखर में सूर्य देव व अन्य भगवानों की मूर्तियां थीं जो करीब एक दशक पहले चोरी हो गई। लोगों का कहना है कि दोनों चट्टानों को देखने से लगता है कि जैसे दो बड़े ढोल रखे गए हैं। वहीं गणेशजी की प्रतिमा भी गोलमटोल ढोलक की तरह है इसलिए यह पहाड़ी ढोलकल के नाम से जानी जाती है। यहां पर्यटक और श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी है। आठ माह पहले जनवरी में ढोलकल गणेश प्रतिमा को अज्ञात लोगों ने चट्टान से नीचे गिराकर क्षतिग्रस्त कर दिया था। जानकारी के बाद जिला प्रशासन ने इसकी खोज खबर ड्रोन कैमरा सहित जवान और स्थानीय ग्रामीणों से कराई।
तब प्रतिमा टूटकर कई खंडों में नीचे खाई में मिली जिसे एकत्र कर पुरातत्वविदों के मार्गदर्शन में केमिकल ट्रीटमेंट से पुन: जोड़कर शिखर पर विराजित किया गया था। प्रतिमा के पुनर्स्थापना के बाद ढोलकल पहाड़ ने पर्यटन नक्शे में जगह पा लिया है।
पर्यटन मंडल ने इसके विकास के लिए बजट आहरित किया वहीं जिला प्रशासन पर्यटकों के लिए टूरिस्ट गाइड तैयार कर रहा है। स्थानीय युवक युवतियां जिले के अन्य पर्यटन और दर्शनीय स्थलों के साथ ढोलकल भी लोगों को पहुंचा रहे हैं। गणेश चतुर्थी पर भी बाहर से आने वाले श्रद्धालु इन्हीं लोक टूरिस्ट गाइड के मार्गदर्शन में भगवान तक पहुंचे और पूजा-पाठ किया।