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सुहागरात के बाद बाल विवाह वैध माना जाता है
कानून के अनुसार, लड़कियों की शादी कम से कम 18 साल की उम्र होने पर ही होनी चाहिए। लड़कों के मामले में 21 साल की न्यूनतम उम्र का प्रावधान है। हालांकि भारतीय कानून ऐसे बाल विवाहों को भी वैध मानता है, जिनमें पति-पत्नी में संबंध बन गया हो। सहमति से शारीरिक संबंध की कानूनी तौर पर वैध उम्र 18 साल है और अगर लड़की की उम्र इससे कम हो तो ऐसे संबंध को बलात्कार माना जाता है। हालांकि, शादी हो जाने पर 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ सेक्स को अपराध नहीं माना गया है।
अब यौन रिश्तों की उम्र बदलनी चाहिए
एनजीओ इंडिपेंडेंट थॉट ने कोर्ट से दरख्वास्त की है कि शादी होने पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 15 से 17 साल किया जाए। एनजीओ ने कहा कि ऐसा न होने पर बाल विवाह में फंसा दिए गए बच्चों के पास शारीरिक संबंध के दायरे में हुए बलात्कार के खिलाफ कोई कानूनी उपाय नहीं बचता है। एनजीओ के वकील गौरव अग्रवाल ने कहा कि उम्र की पिछली सीमा को तब तय किया गया था, जब शादी करने के लिए कानूनी उम्र 16 साल तय की गई थी।
ये तो बाल विवाह के लिए इन्सेन्टिव है
हालांकि एनजीओ के सुझाव का विरोध करते हुए सरकारी वकील बीनू टमटा ने कहा कि विवाह संस्था की रक्षा की जानी चाहिए, भले ही इसमें कम उम्र के लोग शामिल हों। उन्होंने कहा, 'ऐसा नहीं होने पर ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों पर गलत असर पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि भारत में जीवन की सामाजिक-आर्थिक हकीकतों को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं, लिहाजा इस मामले में अदालत को हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है। सरकारी वकील ने कहा कि भारत में 2.3 करोड़ बाल वधू हैं और उनके विवाह की रक्षा कानून को करनी चाहिए। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने सवाल किया कि क्या ऐसा रुख 'बाल विवाह के लिए इन्सेन्टिव' की तरह काम नहीं करेगा?
बता दें कि कोर्ट शुरू में इस मामले में पड़ने के पक्ष में नहीं था। जस्टिस गुप्ता ने कहा, 'कानून बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में है। क्या हम किसी चीज को अपराध घोषित करने के लिए कानून बदल सकते हैं?'