इंदौर। द्रविड़ नगर पुलिस लाइन की 40890 वर्गफीट जमीन, जिसे पुलिस विभाग अपनी संपत्ति बता रहा था, वो बिल्डर के पास चली गई। चौंकाने वाली बात तो यह है कि वहां काम शुरू हो गया और पुलिस को पता तक नहीं चला। वर्षों पहले पुलिस विभाग ने राजस्व विभाग को चिट्ठी लिखकर उस जमीन का मालिकाना हक मांगा था। पुलिस पत्र के उत्तर का इंतजार करती रही। इधर शासन ने बिल्डर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और शासन हार गया। आजादी से पहले इस जमीन पर तोपखाना हुआ करता था। अब यहां आलीशान मल्टी बन रही है। जमीन का मूल्य 11 करोड़ रुपए बताया गया है।
वर्ष 2008 में एसएसपी रहे विपिन माहेश्वरी के संज्ञान में इस जमीन के एक हिस्से पर मल्टी बनने का मामला आया था। इस पर बालाजी इन्फ्रास्ट्रक्चर चार मंजिला बिल्डिंग बना रहा था। पुलिस रिकॉर्ड में यह जमीन होल्कर कालीन मिलिट्री तोपखाना के नाम से दर्ज थी। पुलिस ने आपत्ति दर्ज कराई और निर्माण रुक गया। एसएसपी ने राजस्व विभाग के अधिकारियों से बात की। शासन ने इसे पुलिस की जमीन मानने की बजाए नजूल की जमीन माना। पुलिस अधिकारी शासन से पत्राचार करते रहे कि जमीन नजूल की नहीं बल्कि उन्हीं की मानी जाए। पुलिस को पता ही नहीं चला कि यह मामला कोर्ट में चला गया है।
एक महीने से चल रहा काम, पुलिस को पता ही नहीं
एक माह से बिल्डर ने दोबारा काम शुरू कर दिया, लेकिन पुलिस को पता नहीं चला। इस मामले की फाइल सीएसपी सराफा गुरुकरण सिंह के पास है। सिंह ने बताया कि फैसले की जानकारी हमें नहीं है। जमीन को पुलिस के नाम करवाने के लिए कलेक्टर और एसडीएम को पत्र लिखा है। शासन का तर्क था कि मिलिट्री तोपखाना पुलिस का नहीं था, इसलिए जमीन पुलिस की नहीं है। पुराने नक्शों में यह जमीन पुलिस की दिखाई गई है। कलेक्टर को पत्र लिखा है ताकि पुलिस का नाम चढ़ सके।
छह साल रुका रहा निर्माण, अधिकारी बदले और जमीन चली गई
विपिन माहेश्वरी के बाद 2012 में डीआईजी ए. सांई मनोहर ने इस जमीन को पुलिस के हक में करवाने के लिए पत्राचार शुरू किया। उन्होंने शहरभर की पुलिस की जमीनों का नक्शा बनवाया, जिसमें इसे भी पुलिस का होना बताया गया। उधर, शासन ने बिल्डर को की गई डिक्री को कोर्ट में चुनौती दी, इसके खिलाफ बिल्डर ने धारा 5 (लिमिटेशन एक्ट) के तहत आपत्ति लगाई, जिसे एडीजे कोर्ट ने खारिज किया। बिल्डर हाई कोर्ट गया और 2013 में फैसला उसके पक्ष में हुआ। शासन ने इसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में की लेकिन अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
बिल्डर के पास ऐसे आई जमीन
31 मार्च 1977 को सलोताबाई ने मनोरमाबाई को जमीन दान में दी। 1 दिसंबर 1993 को मनोरमाबाई के नाम डिक्री व 28 नवंबर 1997 को नामांतरण हुआ। 26 अक्टूबर 2007 को बालाजी इन्फ्रास्ट्रक्चर ने मनोरमाबाई से रजिस्ट्री करवाई। 2008 में डायवर्शन हुआ। इसके बाद मल्टी बनने का काम शुरू हुआ।
केस जीतने के बाद काम शुरू किया
हमने सुप्रीम कोर्ट से केस जीत लिया है। कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी हमने कलेक्ट्रेट में जमा करवा दी है। सारी बाधाएं हटने के बाद हमने नियामानुसार दोबारा काम शुरू किया है।
मनीष नियाति, बोर्ड मेंबर मेसर्स बालाजी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि.
कोर्ट के फैसले की मुझे जानकारी नहीं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुझे फिलहाल जानकारी नहीं है। हम इस मसले का दोबारा परीक्षण कराएंगे।
हरिनारायणाचारी मिश्र, डीआईजी