राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह सनसनी फिर जोर मार रही है कि दुनिया इस माह के अंतिम सप्ताह में समाप्त हो जाएगी। एक बार फिर ऐसी भविष्यवाणी आई है। सनसनी है कि आगामी 23 सितंबर दुनिया का आखिरी दिन होगा। उस दिन एक ग्रह आकर पृथ्वी से टकराएगा और फिर सब कुछ खत्म। इस ग्रह को निबिरू या प्लैनेट एक्स नाम दिया गया है। सनसनी के विरुद्ध वैज्ञानिक समुदाय इस चर्चा को सिरे से खारिज कर रहा है। उसके मुताबिक निबिरू नाम के इस ग्रह के पृथ्वी से टकराने की तो बात ही छोड़िए, इसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। वैसे चर्चाएं वैज्ञानिकों की पुष्टि की मोहताज नहीं होतीं, चल निकलती हैं। हर दूसरे-तीसरे साल ऐसी भविष्यवाणी आती है, जिसमें किसी न किसी बहाने धरती के खत्म होने की बात होती है।
समय की अपनी गति है। समय अपनी गति से चलता रहता है और वह तिथि आकर चली जाती है, बिना कोई धमाका किए। इससे बेपरवाह प्रलय-प्रवक्ता फिर आगे की कोई तिथि निकाल लाते हैं। कुछ लोग इसे हानिरहित मनोरंजन के रूप में भी लेते हैं। किसी का इससे क्या बिगड़ जाएगा, थोड़ी चर्चा हो जाती है, कुछ दिन सनसनी का माहौल रहता है, फिर आखिर में सब राहत की सांस लेते हैं। ऐसी चर्चा बच्चों को खास तौर पर भाती है। उन्हें लगता है जब दुनिया ही खत्म होने वाली है तो होमवर्क जैसी उनकी छोटी-मोटी समस्याएं कहां बचेंगी। यह सोच थोड़े समय के लिए ही सही, पर उन्हें राहत देती है। मगर, सच पूछें तो ये चर्चाएं उतनी हानिरहित भी नहीं हैं। इससे किसी का कोई नुकसान नहीं होता. आस्तिकता में कुछ समय के लिए जरुर वृद्धि हो जाती है।
ज्ञात इतिहास के अनुसार पिछली शताब्दी के आखिरी बरसों में एक बार ऐसी ही एक चर्चा के दौरान अमेरिका में एक पंथ से जुड़े लोगों ने यह मान लिया कि ईसा मसीह एक पुच्छल तारे पर चढ़ कर आ रहे हैं और इस दौरान प्राण त्यागने वालों को उनके साथ जाने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस धारणा के प्रभाव में 39 लोगों ने सामूहिक खुदकुशी कर ली थी।
डिप्रेशन के शिकार या अन्य तरीकों से हताश-निराश लोगों को इस तरह की चर्चाएं बिल्कुल अलग तरह से प्रभावित करती हैं। लिहाजा, सर्वनाश की चर्चा को लापरवाही से लेना ठीक नहीं है। ऐसी चर्चाएं चाहे कहीं से भी शुरू हों, पर इन्हें ताकत अंतत: हमारे दिमाग के अंधेरे कोनों से ही मिलती है। इन कोनों को रौशन करने का कोई मौका हमें छोड़ना नहीं चाहिए। इस बात को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प है भी नहीं कि “ ये सब बातें हैं, बातों का क्या ?”
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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