नवरात्रि में नौ दिनो में नौ देवियों की त्रिगुण आराधना की जाती है हम सभी त्रिगुण सत, रज, तम के विषय में जानते हैं। हमारी प्रक्रति तीन गुणों से मिलकर बनी है। प्रत्येक जीव इन तीन गुणों के प्रभाव में रहता है। सारी सॄष्टि प्रक्रति और परमात्मा से मिलकर बनी है। यही प्रक्रति ही परमात्मा की आदिशक्ति या माया है। हर जीव इस माया के प्रभाव में ही रहता है। नवरात्रि के नौ दिन में इस त्रिगुण रूप की आराधना की जाती है।
नवरात्रि में 3-3 दिन त्रिगुण आराधना
प्रथम 3 तिथि माँ दुर्गा की पूजा (तमस को जीतने की आराधना), बीच की तीन तिथि माँ लक्ष्मी की पूजा (रजस को जीतने की आराधना) तथा अंतिम तीन तिथि माँ सरस्वती की पूजा (सत्व को जीतने की आराधना) विशेष रूप से की जाती है।
प्रथम तमस आराधना
नवरात्रि के प्रथम तीन तिथियों के व्रत आलस्य, बुरी आदतें, दुर्वीकार तथा गंदी आदतों पर विजय प्राप्त करने के लिये है। जन्म-जन्म के पापों की काली छाया हमारे सदगुणों को बाहर नही आने देती फलस्वरूप हम दरिद्रता का जीवन गुजारते है जितने में दुखी गरीब तथा परेशान लोग रहते है उनमे तम गुण का विशेष प्रभाव रहता है। मां दुर्गा की आराधाना हमारे भीतर छिपे इन तम रूपी दैत्यों का नाश करती है।
राज़सिक साधना
मां दुर्गा द्वारा तम रूपी दैत्यों के नाश होने से जातक के जीवन में राज़सिक गुणों का विकास होता है अगले तीन दिन मां लक्ष्मी की साधना से राज़सिक गुण जैसे धन, सम्पति ऐश्वर्य, सुख सुविधा आदि की वृद्धि होती है इन तीन तिथियों में की गई साधना महालक्ष्मी की कृपा दिलाती है।
सात्विक आराधना
नवरात्रि के अंतिम तीन दिन साधक सात्विक गुणों की आराधना करते है पहले छह दिन में तम और रज गुणों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात आध्यात्मिक ज्ञान के उद्देश्य से कला तथा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की आराधना करता है।
दुर्गाजी का महामंत्र
इसको मंत्रराज कहा गया है। नवार्ण मंत्र की साधना धन-धान्य, सुख-समृद्धि आदि सहित सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
महालक्ष्मी जी का मूल मंत्र
महालक्ष्मी के इस मूलमंत्र के द्वारा देवराज इन्द्र ने स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया वही कुबेर ने परमऐश्वर्य प्राप्त किया था। वहमंत्र इस प्रकार है
*“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा”
सरस्वती जी का वैदिक अष्टाक्षर मूल मंत्र
जिसे भगवान शिव ने कणादमुनि तथा गौतम को, श्रीनारायण ने वाल्मीकि को, ब्रह्मा जी ने भृगु को, भृगुमुनि ने शुक्राचार्य को, कश्यप ने बृहस्पति को दिया था जिसको सिद्ध करने से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है।
“श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”
उपरोक्त तीनो मंत्रों को किसी विद्वान के परामर्श से इन नौ दिनो में जितना हो सके उतना जाप करना चाहिये इनके जप से हमारे जीवन की दरिद्रता का नाश होता है धनधान्य की वृद्धि होती है साथ ही हमारे सदगुणों का विकास होता है।
प,चंद्रशेखर नेमा "हिमांशु"*
9893280184,7000460931