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इनका कहना था कि याची के पति शंकराश्रम महाविद्यापीठ इंटर कालेज शिखर, मिर्जापुर में चपरासी पद पर तैनात थे। 21 अप्रैल साल 2009 से लापता है, जिसकी प्राथमिकी उसी साल तीस अप्रैल को दर्ज करायी गयी है। पुलिस व परिवार के अथक प्रयास के बावजूद पिछले सात साल से अधिक समय से उनके बारे में कोई सूचना नहीं मिल सकी है। याचिका में यह भी कहा गया कि पति के लापता होने के बाद से परिवार आर्थिक दिक्कतें झेल रहा है। जीविका का अन्य साधन नहीं है। पुत्र को विद्यालय में सहायक अध्यापक नियुक्त करने की मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी गयी है।
कोर्ट ने कहा है कि याची के पुत्र की नियुक्ति उसकी योग्यता के आधार पर की जाए। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सात साल से ज़्यादा का वक्त बीतने पर लापता व्यक्ति को मृत मान लेना गलत नहीं होगा। अफसरों को इसी आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।