भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनंत चौदस कहते हैं। यह तिथि परम सिद्ध तथा व्रत करने वाले की मनोकामना पूर्ण करने में समर्थ है।इस दिन भगवान गणेश अपने धाम को जाते है। चौदस तिथि के स्वामी भगवान शेषनारायण विष्णु के अवतार अनंत है। त्रेता मे वे भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा द्वापर युग मे बलराम हुए। चौदस के दिन विधिविधान से अनंंतनारायण की पूजा करने से जातक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है। चौदह चतुर्दशी कर उसका उदापण करने से भगवान शेष की कृपा होती है। अनंतचौदस के समय भगवान शेषनारायण पर भगवान विष्णुशयन करते है।
अनंतचौदस व्रत
इस बार अनंतचौदस का व्रत 5 सितम्बर को किया जायेगा। इस दिन कलश स्थापना कर तथा चौदह गांठ वाले सूत्र की स्थापना कर शेषषायी अनंतनारायण की विधिविधान से पूजा की जाती है। ततपश्चात अनंतसूत्र को अपने हाथ मे बाधा जाता है। चौदह गांठ वाला ये सूत्र जातक की सभी मनोकामनापूर्ण करता है।
अनंतचौदस कथा
द्वापरकाल मे सभी पांडव जब अपना राज़पाठ हारकर वन मे भयानक कष्ट भोग रहे थे तब भगवान कृष्ण ने उन्हे अनंतचौदस व्रत करने को कहा। वह कथा इस प्रकार है। प्राचीनकाल मे सुमन्त नामक मुनि रहते थे उन्होने अपनी कन्या शीला का विवाह कोडिन्य ऋषि से किया।मुनिकन्या शीला अनंतभगवान का पूजन व व्रत करती थी। जिसके प्रभाव से वह सभी सुखों से सम्पन्न थे। जब कोडिन्य ऋषि को अपनी पत्नी शीला के इस व्रत का पता चला तब उन्हे लगा की ये सारा वैभव तथा मेरे तप से है इसमे पत्नी के व्रत का कोई प्रभाव नही है ऐसा विचारकर उन्हे व्रत करने से मना किया तथा उसके हाथ मे बँधा रक्षासूत्र खुलवा दिया। फलस्वरूप उनके जीवन को दुख और निराशाओं ने घेर लिया। ऋषि को जब अपनी भूल का अहसास हुआ तब उन्होने अपनी पत्नी से माफी मांगी तब उनके कष्टों का अंत हुआ।
राहुदोष, कालसर्प शांति
भगवान शेषनारायण काल ही है। नागस्वरूप है। जिस जातक की पत्रिका मे राहु अशुभ हो अशुभ भाव मे स्थित हो कालसर्प योग बना रहा हो उन्हे अनंतचौदस का व्रत विधिविधान से कर अनंतसूत्र बाँधना चाहिये। जिससे आपपर राहु का कोप शांत होता है साथ ही भगवान की कृपा होती है।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
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