नई दिल्ली। चुनाव सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक नयी याचिका दाखिल हुई है। जिसमें मतदाताओं के सूचना के अधिकार की दुहाई देते हुए मांग की गई है कि नामांकन के वक्त उम्मीदवार द्वारा दाखिल किये जाने वाले हलफनामे के साथ सहयोगी दस्तावेज लगाना भी जरूरी किया जाए ताकि पता चल सके कि उम्मीदवार ने अपनी शिक्षा, संपत्ति और आपराधिक रिकार्ड के बारे में जो बातें हलफनामे में कही हैं वे सही हैं कि नहीं। कोर्ट ने इस याचिका पर केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
ये नोटिस शुक्रवार मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अहमदाबाद के रहने वाले खेमचंद राजाराम खोश्ती की याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किये। गुजरात हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद खोश्ती ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है। याचिका में खोश्ती ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) के 2002 के फैसले में आदेश दिया था कि उम्मीदवार नामांकन भरते समय एक हलफनामा देगा जिसमें अपनी शैक्षणिक योग्यता, स्वयं की, जीवनसाथी की और आश्रितों की संपत्ति का ब्योरा और आपराधिक रिकार्ड का ब्योरा देगा।
कोर्ट के इस आदेश के बाद आरपी एक्ट में संशोधन हुआ और उम्मीदवार द्वारा नामांकन के वक्त हलफनामा देकर उपरोक्त जानकारी देना अनिवार्य हो गया। याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और मतदाताओं को अपने उम्मीदवार के बारे में सारी जानकारी होने का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ क्योंकि हलफनामे के साथ दी गई जानकारी के समर्थन के दस्तावेज नहीं लगाए जाते। ऐसे में न तो रिटर्निग आफीसर यह जांच सकता है कि हलफनामे में दी गई जानकारी सही है कि नहीं और न ही मतदाता जान सकता है कि जो जानकारी उम्मीदवार ने हलफनामे मे दी है वह सही है कि नहीं। याचिकाकर्ता की मांग है कि कोर्ट उम्मीदवार के हलफनामे के साथ दी गई जानकारी के समर्थन दस्तावेज लगाना भी अनिवार्य करे इससे न सिर्फ मतदाताओं को उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना को जांचने में आसानी होगी बल्कि रिटर्निग आफीसर को भी दस्तावेजों को जांचने में आसानी होगी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि हाईकोर्ट ने उसकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस बारे में पहले आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐसे में अब वह कैसे आदेश दे सकता है।