राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के चिंतकों के सामने एक बड़ा सवाल है, कैसे थमे गिरती सकल घरेलू उत्पाद की दर ? ताजे आंकड़ों के अनुसार चालू वित्तवर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2017 में सकल घरेलू उत्पाद में केवल 5.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके पूर्व पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही (जनवरी-मार्च) में भी 6.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। यह तो लगातार दो तिमाहियों में हुई गिरावट है। पिछले वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 9.9 प्रतिशत था। उससे तुलना की जाए तो यह बहुत बड़ी गिरावट है। इसके पूर्व 2014 में जनवरी से मार्च के बीच आर्थिक विकास दर 4.6 प्रतिशत पर थी। इन गिरावटों के साथ भारत से दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का खिताब भी छीन गया है।
अप्रैल से जून के बीच चीन की विकास दर 6.9 प्रतिशत रही है। वस्तुत: भारत लंबे समय से विकास की दौर में चीन को पछाड़े हुए था। चिंता की बात इसलिए भी है कि विनिर्माण क्षेत्र जो सबसे ज्यादा रोजगार देता है, उसमें सबसे ज्यादा गिरावट आई है। विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्यवर्धन की वृद्धि दर 1.2 प्रतिशत रही है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 10.7 प्रतिशत थी। सवाल यह है कि क्या यह गिरावट नोटबंदी से जुड़ी है? इस पर दो मत हैं। एक मत है कि हां, नोटबंदी का असर खरीद और उत्पादन दोनों पर पड़ा किंतु सरकार का तर्क है कि विकास दर की गिरावट का नोटबंदी से कोई लेना-देना नहीं है।
मुख्य सांख्यिकीविद् की ओर से यह कहा गया है कि जीएसटी लागू होने के पूर्व कंपनियों ने इनपुट टैक्स क्रेडिट की चिंता में अपने स्टॉक खत्म करने के साथ उत्पाद को धीमा किया। इसका असर औद्योगिक क्षेत्र पर पड़ा है किंतु चिंता की बात यह भी है कि जीएसटी लागू होने के बाद भी औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक सुधार नजर नहीं आ रहा है। आठ मुख्य क्षेत्रों की वृद्धि दर केवल 2.4 प्रतिशत रही है।
वास्तव में जीएसटी लागू होने के पहले यह तर्क दिया जा रहा था कि इसके साथ विकास दर गति पकड़ लेगी जबकि सेवा क्षेत्र को छोड़कर कोई भी क्षेत्र संतोषजनक विकास का आंकड़ा नहीं दे रहा है। सरकार ने फिर विश्वास जताया कि जीएसटी से सारी अनिश्चितताएं खत्म हो जाएंगी। दूसरे, मॉनसून अच्छा होने से कृषि विकास की गति भी ठीक रहेगी यानी अर्थव्यवस्था फिर से बेहतर प्रदर्शन करके दुनिया में आगे निकल जाएगी। सरकार के विश्वास का आधार कुछ भी हो सकता है, परन्तु सरकारी तर्क गले नहीं उतर रहे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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