कमलनाथ को आंधी के आम पर भरोसा, सिंधिया भी साइलेंट

भोपाल। कांग्रेस एक बार फिर भाजपा को वॉकओवर देने जा रही है। किसान आंदोलन के बाद उठा बुलबुला अब वापस पानी में समा गया है। पार्टी पुराने ढर्रे पर आ गई है। जो नीति​ 2008 और 2013 में अपनाई गई थी वही 2018 में दोहराई जाने की तैयारियां शुरू हो गईं हैैं। चुनाव का ऐलान और टिकट वितरण से पहले अब कांग्रेस में कोई उबाल आएगा यह कहना मुश्किल सा हो गया है। सीएम कैंडिडेट शिप की अब बात भी नहीं हो रही है। कमलनाथ को 'आंधी के आमों' पर भरोसा है। तो सिंधिया भी चुप हो गए हैं। संगठन चुनाव के दौरान नेता आपस में इस कदर उलझ गए हैं कि भाजपा का उन्हे ध्यान तक नहीं आ रहा। 

बेदम हो चुका है संगठन
मप्र में कांग्रेस संगठन बेदम हो चुका है। हालात यह हैं कि आज शिक्षक दिवस के अवसर पर पीसीसी में एक दर्जन शिक्षक भी कांग्रेस से सम्मान कराने उपस्थित नहीं हुए। भाजपा ने हर बूथ पर कार्यकर्ता तैनात कर दिए हैं। वो सक्रिय भी हो चुके हैं। इधर कांग्रेस के पास कुछ लिस्टें रखीं हैं। जिनमें कार्यकर्ताओं के नाम हैं। सक्रियता तो राजधानी में ही दिखाई नहीं दे रही। लगातार सत्ता से बाहर रहने के बाद भी कांग्रेस को ढर्रा वही है, पद मिलेगा तो सक्रिय हो जाएंगे नहीं तो जय श्री राम। 

कमलनाथ को आंधी के आमों पर भरोसा
खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुके कमलनाथ ने अब यूटर्न ले लिया है। उनका कहना है कि किसी एक चेहरे से कुछ नहीं होगा। सब मिलकर लड़ेंगे। उन्हे अपनी पार्टी की लोकप्रियता से ज्यादा शिवराज सिंह की बदनामी पर भरोसा है। उनका कहना है कि 'भाजपा की तैयारियों से कुछ होने वाला नहीं है। प्रदेश का हर वर्ग शिवराज की नीतियों से तंग है। उनकी झूठी घोषणाओं की हकीकत जान चुका है। जनता ने 2018 में उखाड़ फेंकने के लिए वह कमर कस ली है।' सवाल यह है कि यदि जनता को विकल्प नहीं मिला तो एक बार फिर उसे शिवराज को ही चुनना होगा। 2013 में भी तो ऐसा ही हुआ था। 

सिंधिया साइलेंट मोड पर
​सीएम शिवराज सिंह के खिलाफ आंधी की तरह आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अब साइलेंट मोड पर चले गए हैं। सिंधिया कई बार यह कह चुके हैं कि पार्टी को चेहरा घोषित कर देना चाहिए। वो खुद सीएम कैंडिडेट के दावेदार हैं परंतु अब वो चुप हो गए हैं। ना तो शिवराज के खिलाफ एक्टिव हैं और ना ही पार्टी की बात कर रहे हैं। लगता है महाराज ने कांग्रेस को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। 

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