नई दिल्ली। पतंजलि आयुर्वेद का शुरूआत से लेकर अब तक का सफर एक सोची समझी और सफल रणनीति का हिस्सा रहा है। बाबा रामदेव ने योग के नाम पर भीड़ जुटाई। फिर विदेशी उत्पादों में मिलावट और उसके खतरनाक इफैक्ट बताकर लोगों को डराया। जब डर पूरी तरह बैठ गया तो देशभक्ति और स्वदेशी का प्रचार करते हुए पतंजलि आयुर्वेद लांच की गई। बाबा रामदेव खुद अपनी कंपनी के ब्रांड एंबस्डर बने। कंपनी ने 5 साल में मोटा मुनाफा कमाया। अब जब सबकुछ जम गया है और देश भर में बाबाओं के खिलाफ माहौल बनने लगा है तो तय किया गया है कि पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों में बाबा रामदेव दिखाई नहीं देंगे। रामदेव अब पर्दे के पीछे रहेंगे। रणनीति यह है कि धीरे धीरे पतंजलि का अस्तित्व बाबा से अलग कर दिया जाएगा ताकि वो खुले बाजार में खेल सके। जिस रामदेव के कारण पतंजलि ने हजारों करोड़ का कारोबार किया, अब वही रामदेव उसके लिए परेशानी बनता जा रहा है।
बताया जा रहा है कि बाबा रामदेव ने पतंजलि के प्रोडक्टस के प्रचार को मॉडलों के हवाले कर दिया है। अलबत्ता विदेशों में हो रहे प्रचार में बाबा ही पतंजलि का ब्रांड बने रहेंगे। पश्चिमी जगत में मॉडलों से अधिक भरोसा बाबाओं पर किया जाता है, इसलिए विदेशी प्रचार में संत छवि जारी रहेगी। गौरतलब है कि लगभग दो वर्ष पहले बाबा रामदेव की पतंजलि योगपीठ अपने उत्पादन लेकर भारतीय बाजार में उतरी थी। प्रचार तंत्र इतना तेज था कि पुराने जमे जमाए आयुर्वेदिक ब्रांड जैसे गुम हो गए।
देश में सबसे बड़े ब्रांड खुद ही बन गए
देश के प्रत्येक समाचार पत्र और टीवी चैनलों पर बाबा का चेहरा छाया रहा। बाबा ने कुछ उत्पादनों के प्रचार में अपने साथ आचार्य बालकृष्ण को जरूर रखा, लेकिन अधिकांश उत्पादन बाबा के भरोसे ही उतारे गए। यह प्रयोग न केवल कामयाब रहा, बल्कि बाबा ने प्रति माह मॉडलों पर खर्च होने वाला करोड़ों रुपया भी बचा लिया। देश में सबसे बड़े ब्रांड खुद ही बन गए है। यहां तक कि हर छोटे-बड़े शहर और गांव में पतंजलि के स्टोर खुल गए।
तमाम बड़े और मध्यम शहरों में मेगा स्टोर खोले गए। देेश के बड़े मेगा सिटीज में बाजारवाद मेगा स्टोर की बाढ़ आ गई। जिस प्रकार आज जैनरिक दवाओं के स्टोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चित्रों के साथ प्रचारित किए गए है, उसी प्रकार पतंजलि के तमाम स्टोर बाबा रामदेव के चित्र के साथ प्रचारित हुए।