भोपाल। हर हाल में चुनाव जीतने की होड़ ने भाजपा की नीतियों और संस्कारों को किस कदर रौंद डाला इसका एक और मामला सामने आया है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार ने 12 सितम्बर 2017 को हुई कैबिनेट की बैठक में फैसला किया है कि आपातकाल के दौरान यदि कोई 1 दिन भी जेल में रहा तो उसे लोकतंत्र सेनानी माना जाएगा और पेंशन समेत वो सभी सुविधाएं दी जाएंगी जो आपातकाल के विरोध में जेलों में प्रताड़नाएं सहन करने वाले नेताओं को दी जा रहीं हैं। सीधे शब्दों में कहें तो शिवराज सिंह की कैबिनेट ने भाजपा के गद्दारों को सम्मानित करने का फैसला ले लिया है।
सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने कैबिनेट में किए गए फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण (मीसा/डीआईआर राजनीतिक या सामाजिक कारणों से निरुद्ध व्यक्ति) सम्मान निधि 2008 में संशोधन करने का निर्णय लिया। बैठक में शपथपत्र में दो गवाहों की शर्त खत्म करने पर भी सहमति बनी है। इन नियमों के मध्यप्रदेश राजपत्र में प्रकाशन होने की तारीख से 30 नवंबर तक ऐसे पात्र व्यक्ति जो मीसा/ डीआईआर के अधीन राजनैतिक या सामाजिक कारणों से एक माह से कम अवधि के लिए जेल में बंद रहे हों, को आवेदन प्रस्तुत करना होगा। यदि कोई एक माह से भी कम समय के लिए कोई जेल में रहा है, उसे सरकार 8 हजार रुपए प्रतिमाह सम्मान निधि देगी। यदि एक माह से अधिक समय तक कोई जेल में रहा है, उसे 25 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाएंगे।
सतही तौर पर यह फैसला मीसाबंदियों के हित में नजर आता है, लेकिन ध्यान से देखें तो यह असली मीसाबंदियों का अपमान है। भारत में 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 आपातकाल लागू रहा। आपातकाल लागू होते ही हजारों विरोधी नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया गया। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे नेताओं की थी जिन्होंने लिखित में माफी मांगी ओर जेल से रिहा हो गए। ये सभी रिहाईयां 14 नवम्बर से पहले हुईं। इस तरह के नेताओं को लोकतंत्र का गद्दार माना गया। स्वभाविक है। माफीनामे का सीधा अर्थ है कि वो आपातकाल के फैसले का समर्थन कर रहे थे। अब यदि सरकार ऐसे नेताओं को सम्मान और पेंशन देने जा रही है तो स्वभाविक है इसे अनुचित कहा जाएगा। जनता के टैक्स का पैसा लोकतंत्र के गद्दारों को देना कौन उचित ठहराएगा।