राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय काल गणना भले ही इसे कलियुग कहे, पर यह युग सूचना युग है। सूचना युग में डिजिटल तकनीक खूब फल-फूल रही है। कुछ वर्षों पूर्व सूचना पर देशों के आधिपत्य, इस तरह की सूचनाओं तक पहुंच को बाधित कर देने की उनकी क्षमता और उससे खिलवाड़ करने की शक्ति से प्राधिकार हासिल होता था। वर्तमान में तो देश गुणवत्तापरक और विश्वसनीय सूचना का तीव्र प्रसार कर पाने की क्षमता होने की स्थिति में ही प्रासंगिक बने रह सकते हैं। गोपनीयता को दी जाने वाली प्राथमिकता अब पारदर्शिता में बदल गई है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने सार्वजनिक पटल पर नवीनतम सूचनाओं की बौछार ने आम आदमी' को भी सशक्त किया है। जिससे राज्य एवं उसके प्रतिनिधि अभूतपूर्व एवं व्यापक सार्वजनिक समीक्षा की जद में आ गए हैं।
एक बड़ा परिवर्तन कूटनीतिक क्षेत्र में भी आया है। डिजिटल युग ने परंपरागत कूटनीति को इस कदर प्रभावित किया है कि राजनयिक अब कम औपचारिक हो रहे हैं और उनसे संपर्क साधना भी सुगम हो गया है। इससे राजनयिक अपने देश के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर अब आम लोगों की पहुंच में आ गए हैं। आधुनिक कूटनीति की मांग है कि वर्गीकृत ढांचों के जरिये उर्ध्वाधार के बजाय क्षैतिज चैनलों से नेटवर्किंग की कला में भी महारत हासिल हो। यह सार्वजनिक पहुंच जरूरी गोपनीयता के साथ-साथ चलनी चाहिए। असल में संवेदनशील परिस्थितियों में पारदर्शिता अक्सर मामला बिगाडऩे का काम करती है यह असरदार कूटनीति के सामने चुनौती भी बनकर उभरी भी है।
फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी सूचना एवं उससे संबंधित विचारों के त्वरित प्रसार को संभव बना देते हैं। राजनयिक विश्वसनीय सूचना प्राप्त करने और अपने आकलन को सार्वजनिक मंच पर ले जाने के लिए इन साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए ताकि गलत धारणा और गलत जानकारी को न्यूनतम किया जा सके। विदेश मंत्रालय भारत सरकार का वह पहला मंत्रालय था जिसने सोशल मीडिया के इन माध्यमों का इस्तेमाल शुरू किया। इस तरह विदेश मंत्रालय ने कूटनीति को डिजिटल युग के अनुरूप ढालने में अग्रदूत की भूमिका निभाई है। घटनाओं पर तीव्र प्रतिक्रिया देने और सूचना वक्र पर दूसरों से आगे रहने की यही काबिलियत कूटनीति के एक बेहद अहम हिस्से को कमतर कर सकती है।
किसी खास स्थिति में प्रतिक्रिया देने में देर होने से जोखिम भी बढ़ सकता है क्योंकि मौजूदा दौर में घटनाएं पलक झपकते ही घट जाती हैं। जवाब भी आसान नहीं होते हैं। इन दिनों देशों के प्रमुख भी ट्विटर पर मौजूद हैं और किसी घटना पर व्यक्त उनके विचार बहुत जल्द फैल जाते हैं। कभी-कभी नेताओं की व्यक्तिगत कूटनीति राजनयिकों के वार्तालाप से कहीं अधिक ठोस नतीजे देने में सफल रहती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।