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पिछड़े कुर्मा समुदाय से संबंध रखने वाले बंडारू को तेलंगाना में जनता के बीच लोकप्रिय नेता और संगठन को मजबूत करने वाले व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता के बीच उनका काफी सम्मान है और वह तेलंगाना में पार्टी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।
तत्कालीन आंध्र प्रदेश में बीजेपी कभी भी एक बड़ी ताकत नहीं रही और राज्य में पार्टी की पहचान के लिए बंडारू महत्वपूर्ण चेहरों में से एक हैं। वह अटल बिहारी वाजपेयी की 1998-2004 के दौरान एनडीए सरकार में अर्बन डिवेलपमेंट और रेलवे मंत्री रह चुके हैं। मोदी सरकार में उन्हें नवंबर 2014 में मंत्री ऑफ स्टेट (इंडिपेंडेंट चार्ज) के तौर पर शामिल किया गया था।
बंडारू 1989 तक आरएसएस के प्रचारक रहे थे और इसके बाद उन्होंने विवाहित जीवन बिताने का फैसला किया था, जबकि बीजेपी के साथ उनका राजनीतिक सफर जारी रहा था। इमर्जेंसी के बाद 1977 में आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में आए विनाशकारी चक्रवाती तूफान के बाद पुनर्वास कार्य में उनकी मेहनत की काफी प्रशंसा हुई थी और आरएसएस में उनका कद बढ़ गया था।
प्रचारक के तौर पर उन्होंने आंध्र प्रदेश बीजेपी के लिए जनरल सेक्रटरी (ऑर्गेनाइजेशन) के तौर पर 1980 के दशक के दौरान काम किया। इसके बाद वह दो बार आंध्र प्रदेश में पार्टी यूनिट के प्रमुख रहे। राज्य में उस समय बीजेपी की ताकत बहुत कम थी और बंडारू अपनी लोकप्रियता के दम पर ही कुछ मौकों पर पार्टी के लिए जीत हासिल करने में कामयाब रहे। वह 1991 में राम मंदिर आंदोलन के चरम पर होने के समय पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 1999 में वाजपेयी की लोकप्रियता के दौर में वह दोबारा निर्वाचित हुए। इस बार भी मोदी लहर पर सवार होकर वह राज्य से चौथी बार लोकसभा के लिए चुने गए।