इंदौर। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, इंदौर के दिग्गज नेता, पूर्व मंत्री एवं महू विधायक कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ दायर की गई चुनाव याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई है। उनके खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस प्रत्याशी अंतर सिंह दरबार ने 20 जनवरी 2014 को विजयवर्गीय के खिलाफ यह चुनाव याचिका दायर की थी। आरोप है कि विजयवर्गीय ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया है, इसलिए उनका निर्वाचन निरस्त किया जाए। चुनाव याचिका पर बुधवार को सुनवाई खत्म हो गई। जस्टिस आलोक वर्मा ने दोनों पक्षों से कहा है कि वे लिखित बहस देना चाहते हैं तो 18 सितंबर के पहले दे सकते हैं।
दरबार ने 21, विजयवर्गीय ने पेश किए 15 गवाह
याचिकाकर्ता ने 21 गवाहों के बयान कराए, जबकि विजयवर्गीय ने 15 गवाह पेश किए। कोर्ट ने भी अपनी तरफ से विटनेस के रूप में चार लोगों को गवाही के लिए बुलाया। इनमें मानपुर सीएमओ आधार सिंह, तत्कालीन उप जिला निर्वाचन अधिकारी संतोष टैगोर, कांस्टेबल मनोज और अनिल शामिल हैं।
3 साल 7 महीने से चल रही सुनवाई
याचिका जबलपुर में दायर हुई थी। वहां से इसे इंदौर ट्रांसफर किया गया। तीन साल 7 महीने चली सुनवाई में 90 से ज्यादा पेशियां लगीं। याचिकाकर्ता की तरफ से 75 दस्तावेज पेश किए गए। इनमें 5 सीडी भी शामिल हैं। कोर्ट ने 31 मार्च 2015 को याचिकाकर्ता अंतर सिंह दरबार के बयान दर्ज किए थे। 25 नवंबर 2016 को विजयवर्गीय के बयान हुए। तीन घंटे से ज्यादा समय तक वे कोर्ट में खड़े थे।
याचिका में कोर्ट ने ये मुद्दे बनाए
कोर्ट ने याचिका में चार मुद्दे बनाए थे। इनमें मोहर्रम के कार्यक्रम में विजयवर्गीय द्वारा मंच पर मेडल और ट्रॉफी बांटना, पेंशनपुरा में चुनाव प्रचार के दौरान आरती उतारने वाली महिलाओं को नोट बांटना, मतदाताओं को शराब बांटना और मुख्यमंत्री द्वारा चुनाव सभा में मेट्रो को महू तक लाने और गरीबों को पट्टे देने की घोषणा शामिल है।
महाधिवक्ता ने रखा सीएम का पक्ष
सीएम द्वारा चुनावी सभा में मेट्रो और गरीबों को पट्टा देने की घोषणा को भी मुद्दा बनाया गया है। सीएम का नाम आने के बाद कोर्ट ने उनसे पूछा था कि क्या वे याचिका में अपना पक्ष रखना चाहते हैं। इस पर सीएम की तरफ से महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि मेट्रो की डीपीआर चुनाव के पहले ही तैयार हो चुकी थी। सीएम ने चुनावी सभा में गरीबों को भू-राजस्व संहिता के प्रावधान की जानकारी दी थी। पट्टे की घोषणा नहीं की थी।
झूठा शपथ-पत्र वाला मामला भी उठा
जुलाई 2015 में उस वक्त हड़कंप मच गया था, जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में एक आवेदन देकर विजयवर्गीय पर कोर्ट में झूठा शपथ-पत्र देने का आरोप लगाया। याचिकाकर्ता का कहना था कि विजयवर्गीय ने 6 जुलाई 15 के शपथ-पत्र में खुद को मंत्री बताया, जबकि उन दिनों वे मंत्री नहीं थे। इतना ही नहीं, शपथ-पत्र पर विजयवर्गीय के हस्ताक्षर बताए जा रहे हैं, जबकि वे कोर्ट आए ही नहीं। कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश भी दिए थे।