राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसी भी राज्य में हो, हर जगह से एक ही शिकायत सुनने में आती है। नौकरशाही ठीक से काम नहीं कर रही है, यह बात मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हरियाणा की सरकारों के बारे में आये दिन सुनने को मिलती है, महाराष्ट्र भी अब अछूता नहीं है। मुम्बई की बाढ ने इस कारण की सत्यता को उजागर कर दिया है। इन प्रदेशों में शासन के मुख्य पदों पर नियमों के विपरीत पद स्थापनाएं की हुई हैं। कहीं काडर के पदों पर नान काडर के अफसर जमे हैं तो कहीं पद स्थापना वरिष्ठता को लाँघ कर की गई है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी अब राज्य के स्थान पर केंद्र में पदस्थापना के लिए प्रयास करते हैं और जैसे भी हो इन राज्यों से मुक्ति चाहते हैं।
सबसे आश्चर्यजनक उदाहरण छतीसगढ़ का है। जहाँ मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव ही संविदा नियुक्ति पर हैं और अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी राज्य के बाहर जाने की जुगत लगा रहे है। यह कहानी भी बड़ी विचित्र है, सरकार को नियमित सेवा का कोई अधिकारी नहीं मिल रहा है या सरकार को ऐसे ही चलने में सुविधा है। यह किस्सा 2006 से चल रहा है। काडर सेवा महत्वपूर्ण पद पर ये संविदा नियुक्ति चल ही नहीं रही, संविदा पर चल रहे अधिकारी पदोन्नत भी हुए हैं। सोशल मीडिया के अलावा, सूचना के अधिकार, अन्य प्रकार से जांनकारी प्राप्त करने वाले अब न्यायालयीन मुकदमों का सामना कर रहे है। छतीसगढ़ सरकार के अधिकारिक सूत्र इस सारे मामले पर टिप्पणी करने से बचते है, वो सारी कहानी के पीछे व्यक्तिगत स्वार्थों से लिपटी एक लम्बी दास्ताँ का जिक्र करते हैं।
ऐसा ही मध्यप्रदेश में भी है। उच्च न्यायलय की इंदौर पीठ में मंदसौर गोली कांड को लेकर दायर एक मुकदमें में मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी को जिम्मेदार बताया गया है। मुकदमे का फैसला न्यायलय को करना है, सामान्य प्रशासनिक दृष्टि से ऐसे आदेश और उसे देने अधिकारिता की बात गले नहीं उतरती है। प्रशासनिक हल्के में उद्द्योग विभाग से भारतीय प्रशासनिक सेवा में आये अधिकारियों की चमत्कारिक सेवाएं चर्चा में हैं। मंदसौर का मामला किसानों से जुड़ा है। मुख्यमंत्री ने विधान सभा में केंद्र को इस विषयक प्रारूप भेजने की बात कही थी। मुख्यमंत्री सचिवालय के सर्वेसर्वा एक अधिकारी से जब भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार ने प्रश्न किया तो उन्होंने जो टालने वाला जवाब दिया वह बताता है कि अधिकारी प्रशासन कम ठकुरसुहाती में ज्यादा लगे हैं।
इंडियन मेडिकल काउन्सिल ने मुम्बई बाढ़ में डॉ अमरापुरकर की मौत के बाद जो कहानी बयाँ की है, वो भी कुछ ऐसी ही है। मुम्बई में भी चहेते अधिकारी की पदस्थापना मुख्यमंत्री सचिवालय से की गई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयों की आपत्ति,सुझाव और वर्षा पूर्व प्रबंधों की हिदायत के चेहेतों की चेतना जगा नहीं पाई। इन सारे मामलों को उजागर करने का नया हथियार सोशल मीडिया बनता जा रहा है और सच झूठ के फैसले अदालत में मुकद्में के रूप फंस जाता है। इसके बीच इसे दबाने का एक हथियार मानहानि का दावा है, जो सत्य को कम से कम कुछ समय तक ढंक तो देता ही है। भाजपा को अपनी साख कायम रखने के लिए सोचना चाहिए, ये “चहेते” कब तक और क्यों?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।