उपदेश अवस्थी/भोपाल। मध्यप्रदेश में अब भाजपा को शिवराज सिंह की पकड़ से मुक्त कराने की रणनीति पर काम शुरू हो गया है। अब जबकि सीएम शिवराज सिंह के फालोअर्स की संख्या बढ़ाई जा रही है तो मध्यप्रदेश में घर बैठ चुके भाजपा कार्यकर्ताओं को फिर से एक्टिव करने की रणनीति पर काम शुरू हो गया है। ताकि उस स्थिति से भी निपटा जा सके जिसकी न्यूनतम संभावना है या फिर जो सिर्फ अफवाहों में सुनी जा रही है। अब तक भाजपा का हर फैसला सीएम शिवराज सिंह की मंशा के अनुरूप हो रहा था। हर चुनाव शिवराज सिंह के कारण ही जीता जा रहा था परंतु अब रणनीति यह है कि 2018 के चुनाव से पहले संगठन को इतना मजबूत और सक्रिय कर दिया जाए कि चुनाव जीतने के लिए उसे किसी नेता का मोहताज ना बनना पड़े।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक अक्टूबर में तय कर दी गई है। इस बैठक की तारीखें पहले 13, 14 और 15 अक्टूबर वायरल हुईं थीं परंतु अब स्पष्ट हुआ है कि यह 11,12 एवं 13 अक्टूबर को होगी। कार्यक्रम स्थल अभी तय नहीं किया गया है। इस बैठक में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, भैयाजी जोशी, सुरेश सोनी, दत्तात्रेय होसबोले समेत संघ के कई राष्ट्रीय पदाधिकारी मौजूद रहेंगे।
आधिकारिक रूप से कहा गया है कि पिछले दिनों ही मथुरा में आरएसएस की राष्ट्रीय समन्वय की बैठक हुई थी। इसमें तय हुए मुद्दों पर आगे की रणनीति बनाने के लिए भोपाल में चर्चा की जाएगी लेकिन इस सबके बीच एक और विषय होगा जिस पर गंभीरता से और बड़े ही सुनियोजित तरीके से काम करने की रणनीति बनाई जाएगी।
मप्र का नेतृत्व संघ का भगवा ध्वज करेगा, कोई नेता नहीं
दरअसल, इन दिनों मप्र में शिवराज सिंह का ग्राफ भाजपा से ज्यादा बड़ा बनाया जा रहा है। प्रदेश भर में 'शिवराज के सिपाही' की भर्ती जारी है। एक अन्य समूह का विस्तार किया जा रहा है जो शिवराज सिंह की लोकप्रियता के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। इस समूह में कई भाजपा एवं आरएसएस के कार्यकर्ता भी शामिल हैं परंतु शिवराज सिंह उनकी पहली पसंद है। सूत्रों का कहना है कि आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में इस विषय पर भी बात होगी लेकिन बेहद गोपनीय तरीके से। रणनीति तय की गई है कि मध्यप्रदेश में एक बार फिर पुरानी भाजपा को एक्टिव किया जाएगा जिसका नेतृत्व संघ का भगवा ध्वज किया करता था। पिछले कुछ सालों में देखने में आया है कि भाजपा बिना शिवराज सिंह के कोई चुनाव नहीं जीत पाई। 2013 के चुनाव में भी टिकट वितरण से लेकर चुनाव जीतने तक शिवराज की ही लहर चली। यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मध्यप्रदेश में मोदी की आंधी से ज्यादा शिवराज सिंह की लोकप्रियता को प्रमाणित करने का प्रयास किया गया। परंतु अब आरएसएस की रणनीति है कि भाजपा को 2018 के पहले इतना मजबूत कर दिया जाए कि उसे चुनाव जीतने के लिए किसी नेता की जरूरत ना हो।
शिवराज का ओवर कांफीडेंस तोड़ना है
कुल मिलाकर अब भाजपा और आरएसएस के रणनीतिकार मध्यप्रदेश में भाजपा को शिवराज सिंह के प्रभाव से बाहर लाने के लिए काम करेंगे। तैयारी की जा रही है कि मध्यप्रदेश में 2018 का चुनाव भाजपा जीतेगी, इसका श्रेय शिवराज सिंह को नहीं दिया जाएगा। यह कवायद शिवराज सिंह को संगठन के दायरे में बनाए रखने के लिए भी है। आरएसएस और भाजपा में अक्सर दौहराया भी जाता है कि कोई भी नेता संगठन से बड़ा नहीं हो सकता। याद दिला दें कि इन दिनों सीएम शिवराज सिंह के बयानों और भाषणों में कुछ अहंकारी शब्दों का समावेश हो गया है। निश्चित रूप से शिवराज सिंह एक उपयोगी कार्यकर्ता हैं परंतु कार्यकर्ता को भटकने से रोकने की कवायद भी तो करनी ही होती है। कार्यकर्ता जितना बड़ा होता है, कवायद भी उतनी ही बड़ी करनी होती है। रणनीतिकारों का मानना है कि अब बागड़ लगाना अनिवार्य हो गया है।
बजरंग दल भी एक्टिव होगा
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से पहले बजरंग दल काफी एक्टिव हुआ करता था परंतु भाजपा के सत्ता में आने के बाद बजरंग दल के पास वो मुद्दे ही नहीं रहे जिनको लेकर वो जनता के बीच जाते थे। बजरंग दल के कई नेता सत्ता का फायदा उठाने में लग गए और संगठन ठंडा बड़ गया। अब बजरंग दल को भी एक्टिव किया जा रहा है। आरएसएस की बैठक के बाद 27, 28 एवं 29 अक्टूबर को भोपाल में बजरंग दल का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया है। रणनीति वही है। संगठन को सर्वोपरि बनाए रखने के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करना।