
1989 में चुरहट कांड के चलते अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा तो राजीव गांधी चाहते थे कि तत्कालीन रेलमंत्री माधवराव सिंधिया को मध्यप्रदेश की कमान सौंप दी जाए लेकिन अर्जुन सिंह, सिंधिया के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे। इधर माधवराव सिंधिया भोपाल आ गए। उन्हे बताया गया था कि उनके नाम का ऐलान होने वाला है। वो इंतजार कर रहे थे कि तभी अर्जुन सिंह ने एक चाल चली और मोतीलाल वोरा के नाम का ऐलान हो गया। इस चालबाजी से राजीव गांधी इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने अर्जुन सिंह के खिलाफ श्यामाचरण शुक्ला को कांग्रेस में वापस बुलाया और शक्तिशाली बना दिया। वोरा के बाद शुक्ला सीएम बनाए गए। अर्जुन सिंह को मप्र की राजनीति से बाहर कर दिया गया। उस प्रसंग का असर यह है कि आज भी अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह का गांधी परिवार में कोई खास सम्मान नहीं है।
अर्जुन सिंह ने अपनी चालें चलना बंद नहीं किया। वो दिल्ली से बैठकर दिग्विजय सिंह को आगे बढ़ाने लगे। 1993 में एक बार फिर वही समय लौटकर आया और माधवराव सिंधिया का नाम सीएम के लिए फाइनल किया गया। लास्ट मिनट में फिर से एक रणनीति पर काम हुआ और दिग्विजय सिंह को मप्र का मुख्यमंत्री बना दिया गया। दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच राजनैतिक प्रतिस्पधा से कहीं आगे व्यक्तिगत दुश्मनी के भाव थे। हाईकमान का पूरा सपोर्ट होने के बावजूद दिग्विजय सिंह ने जब जब मौका मिला माधवराव सिंधिया का नुक्सान किया और बार बार उन्हे अपमानित किया।
अब ऐसा ही कुछ एक बार फिर होने जा रहा है। माधवराव सिंधिया के वारिस एवं सिंधिया राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सीएम कैंडिडेटशिप के लिए फाइनल होता नजर आ रहा है। कमलनाथ ने भी अपनी एनओसी दे दी है परंतु सवाल यह है कि क्या अर्जुन सिंह के चेले दिग्विजय सिंह शांत रहेंगे। क्या वो एन वक्त पर ऐसी कोई चाल नहीं चलेंगे जो अचानक फैसला बदल दे।