अमित आनंद चौधरी/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश के बाद कोई भी राज्य सरकार सांसदों, विधायकों, नौकरशाहों, जजों और पत्रकारों को जमीनों की रेवड़ियां नहीं बांट पाएंगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों की विवेकाधीन ताकत पर नकेल कसते हुए पब्लिक लैंड अलॉट करने के लिए नई गाडलाइन बनाने को कहा है। जस्टिस जे चेलामेश्वर और एस अब्दुल नजीर की बेंच ने कहा कि जब देश में लाखों गरीबों के पास रहने की छत नहीं है और उन्हें खुले आकाश में सोना पड़ता है, ऐसे में कोई भी सरकार भला कैसे खास लोगों को जमीन अलॉट कर सकती है। अब लैंड ऐलोकेशन के इस तरीके की न्यायिक समीक्षा करने की जरूरत है।
बेंच ने कहा, 'प्लॉट अलॉट करते वक्त हमें ज्यादा पारदर्शी सिस्टम बनाने की आवश्यकता है। शहरों में तो गरीबों को एक घर तक नसीब नहीं होती है और उन्हें बेहद दयनीय हालत में रहना पड़ता है, लेकिन सरकारें ऐसी जमीन किसी दूसरे को अलॉट कर देती है। ऐसे में वक्त आ गया है कि लैंड ऐलोकेशन को लेकर नई गाडलाइन बने और अदालत भी इस पर नजर रखेगी।'
अटॉर्नी जनरल केके वेनुगोपाल भी अदालत के विचार से सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें संबंधित प्रक्रिया को पालन करने के बजाय मनमाने ढंग से प्लॉट अलॉट कर रही हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने और गाइडलाइन बनाने में मदद की गुजारिश की।
इस मामले से जुड़े याचिकाकर्ताओं में से एक वकील प्रशांत भूषण ने कहा, 'जज, नौकरशाह और राजनेताओं को प्लॉट अलॉट करना कानूनन गलत है, जबकि इन लोगों के पास पहले ही घर है। क्या हम ऐसा समाज चाहते हैं जहां गरीब बेघर बने रहें और आलीशान घरों में रहने वाले लोगों को सरकार जमीन रेवड़ियों की तरह बांटती रहे?'
प्रशांत भूषण ने अदालत को गुजरात सरकार के उस फैसले की तरफ भी ध्यान दिलाया, जिसमें प्रदेश सरकार ने 2008 में 27 रिटायर्ड और कार्यरत जजों को प्लॉट अलॉट किए थे। यह मामला अभी गुजरात हाई कोर्ट में लंबित है।