नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। वे भारत में शरणार्थी की तरह नहीं रह सकते हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि उन्हें वापस भेजे जाने का फैसला सही है। सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या मुसलमानों के मामले पर 18 सितंबर को सुनवाई करेगा। पिछले 11 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई एक सप्ताह के लिए टाल दी थी। पिछले 4 सितंबर को दो रोहिंग्या मुसलमानों की तरफ से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था और एक सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि बेंच यह फैसला करेगी कि रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरणार्थी का दर्जा पाने के हकदार हैं या नहीं।
याचिका दो शरणार्थियों ने दायर की है। याचिका में एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी के 14 अगस्त के एक खबर को आधार बनाया गया है जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को रोहिंग्या मुसलमानों समेत अवैध अप्रवासियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने का निर्देश दिया है। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध बहुल म्यामांर में कई मुकदमे लंबित हैं। बताया जा रहा है कि भारत में करीब चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमानों ने शरण ले रखी है।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार का इन शरणार्थियों को वापस भेजने का फैसला संविधान की धारा 14, 21 और 51(सी) का उल्लंघन है। उनको वापस भेजना अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों का उल्लंघन है। अंतर्राष्ट्रीय कानून इन शरणार्थियों की सुरक्षा की गारंटी देता है। याचिका में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की 2016 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि म्यामांर के अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों के जीने की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सरकार को रोहिंग्या मुसलमानों को जबरन वापस भेजने से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करे और उन्हें जिंदा रहने के लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया करायी जाएं।
इस याचिका के बाद 8 सितंबर को राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के नेता गोविंदाचार्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की मांग करने वाली एक याचिका दायर की है। अपनी याचिका में उन्होंने वकील प्रशांत भूषण द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने की अर्जी का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान देश के संसाधनों पर बोझ हैं और देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी। वहीं जम्मू-कश्मीर के कुछ रोहिंग्या मुसलमानों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया है।