नई दिल्ली। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन और म्यांमार दौरे के दौरे पर है। आखरी दिन वो मुगल शासक बहादुर शाह जफर की मजार पर सज़दा करेंगे जो यांगून शहर में स्थित है। यूं तो इतिहास में दर्ज है कि बहादुर शाह जफर ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया था और इसीलिए अंग्रेजों ने उन्हे कैद किया परंतु आरएसएस के विद्वान मुगलों को भारत का दुश्मन मानते हैं जिन्होंने अंग्रेजों से पहले भारत को गुलाम बनाया। लोकसभा में भाजपा ने जब सुषमा स्वराज नेता प्रतिपक्ष थीं, बहादुर शाह जफर की मजार को भारत लाने की मांग की थी। माना जा रहा था कि मोदी सरकार यह पहल करेगी।
मोदी और बहादुर शाह जफर का एक और कनेक्शन है। 2014 में प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने आंध्रप्रदेश की एक सभा में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंम्हा राव का जिक्र करते हुए कहा था कि जैसे अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को दिल्ली में 2 गज जमीन तक नहीं दी, उसी प्रकार मां बेटे की सरकार ने नरसिम्हा राव को दिल्ली में जगह नहीं दी। माना जा रहा था कि मोदी जब प्रधानमंत्री बनेंगे तो वो नरसिम्हा राव का दिल्ली में मेमोरियल की मांग को पूरा कर देंगे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।
इतिहास में दर्ज है कि मुगल शासन के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर ने 1857 के गदर में हिस्सा लिया था और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया था। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके म्यांमार भेज दिया था जिसे उस समय बर्मा कहा जाता था। लंबे समय तक इस बात को लेकर विवाद चलता रहा कि बहादुर शाह जफर की मौत असल में बर्मा में किस जगह पर हुई थी लेकिन आखिरकार 1994 में यांगून शहर में उनकी मजार बनाई गई। उनके मजार को भारत लाने की मांग भी लंबे समय से होती रही है। 2013 में विपक्ष के नेता के तौर पर सुषमा स्वराज ने यह मांग रखी थी कि बहादुर शाह जफर की मजार को भारत वापस लाया जाए।
यांगून में मजार बनने के बाद म्यांमार के दौरे पर जाने वाले लगभग हर भारतीय महत्वपूर्ण व्यक्ति ने वहां जाकर श्रद्धांजलि जरुर दी है। मोदी से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, विदेश मंत्री जसवंत सिंह और सलमान खुर्शीद सभी भारतीय नेता बहादुर शाह जफर की मजार पर जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी ने नरसिम्हा राव की तुलना बहादुर शाह जफर से क्यों की थी
लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2014 को आंध्र प्रदेश के गुंटूर में एक चुनावी सभा में बहादुर शाह जफर की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से की थी। मकसद था लोगों को यह समझाना कि कांग्रेस में गांधी नेहरु परिवार के अलावा किसी और की कद्र नहीं है।
मोदी ने चुनावी सभा में कहा था कि बहादुर शाह जफर ने हिंदुस्तान की आजादी की जंग में हिस्सा लिया था। ठीक वैसे ही जैसे आंध्र प्रदेश के नरसिम्हा राव ने देश को आर्थिक आजादी दिलाने की जंग लड़ी थी। जिस तरह से अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को दिल्ली में 2 गज जमीन नहीं दी वैसे ही मां और बेटे की सरकार ने नरसिम्हा राव के निधन के बाद उन्हें भी दिल्ली में 2 गज जमीन मुहैया नहीं होने दिया। दरअसल नरसिम्हा राव के परिवार ने मांग की थी कि दिल्ली में उनका मेमोरियल बनाया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहादुर शाह जफर की मजार पर जाना खास इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुगल शासन काल को भारत की गुलामी का हिस्सा मानता रहा है।