भोपाल। मध्यप्रदेश में कर्मचारी राजनीति अब नई करवट लेने जा रही है। 2018 में विधानसभा चुनाव हैं और कर्मचारी चाहते हैं कि इससे पहले उनकी मांगें पूरी हो जाएं लेकिन कर्मचारी संगठनों के नेताओं का सत्ता से गठजोड़ हो गया है। प्रतिष्ठित कर्मचारी नेता सरकार को राहत देने के लिए आंदोलन को टालने की कोशिश कर रहे हैं। नतीजा कर्मचारियों ने नए नेताओं की तलाश शुरू कर दी है। पिछले दिनों राजधानी में लिपिकों के प्रदर्शन के बाद कर्मचारी उत्साहित हैं। अब वह मप्र अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा और अध्यक्षीय मंडल से इतर मंत्रालय, सतपुड़ा व विंध्याचल भवन के कर्मचारियों को इकठ्ठा कर आंदोलन का आगाज कर रहे हैं। इसे लेकर पहले चरण की बैठक हो चुकी है।
प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में कर्मचारियों की मांगों को छोड़ नेता खुद के मामले निपटाने में लगे हैं। इसे देखते हुए आम कर्मचारी खुद सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गया है। लिपिकों की रैली ने उन्हें यह हिम्मत दी है। लिहाजा, छह साल पहले की तरह मंत्रालय, सतपुड़ा और विंध्याचल भवन के कर्मचारी इकठ्ठा हो रहे हैं। अलग-अलग संगठनों से 10 जुझारू नेतृत्वकर्ता तलाश लिए गए हैं, जो तीनों भवनों के कर्मचारियों को लेकर आंदोलन की रणनीति बनाएंगे और प्रभावी आंदोलन करेंगे।
मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के लक्ष्मीनारायण शर्मा, विजय रघुवंशी, सुरेश गर्ग ने बताया कि वर्तमान हालात में आंदोलन जरूरी है। सभी नेतृत्वकर्ता अपने वर्तमान संगठन और पद की हैसियत से इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं और न ही इसे संगठन की शक्ल दी जा रही है। हम एक जुझारू ग्रुप की तरह इकठ्ठे होकर आंदोलन करेंगे।