लखनऊ। सहायक अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए NCTE द्वारा जारी की गई अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध करार दी जा चुकी है। बावजूद इसके उत्तरप्रदेश में इसे लागू किया जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के बाद आदेशित किया है कि एक माह के भीतर NCTE इस संदर्भ में स्पष्टीकरण जारी करे एवं सहायक अध्यापकों की नियुक्ति वैध मानी जाए। NCTE की अधिसूचना के अनुसार सहायक अध्यापक की भर्ती के लिए स्नातक में न्यूनतम 45 प्रतिशत अंक अनिवार्य है।
विवेक कुमार रजौरिया और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने यह आदेश दिया। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह की दलील थी कि 28 अगस्त 2010 को जारी एनसीटीई की अधिसूचना के पैरा तीन में कहा गया कि सहायक अध्यापक बनने के लिए स्नातक में न्यूनतम 45 प्रतिशत अंक होना अनिवार्य है। अधिसूचना के इस हिस्से की वैधानिकता को हाईकोर्ट में नीरज कुमार ने चुनौती दी थी। हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीमकोर्ट में इसे चुनौती दी गई। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीमकोर्ट ने पैरा तीन को संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत करार देते हुए अवैधानिक माना। एनसीटीई को इस संबंध में एक माह में स्पष्टीकरण जारी करने का निर्देश दिया है।
हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि याचीगण 72825 सहायक अध्यापक भर्ती में चयनित हुए और सहायक अध्यापक पद पर मौलिक नियुक्ति पा चुके हैं। इसके बावजूद बीएसए एटा ने उनकी नियुक्ति को अवैध मानते हुए वेतन जारी नहीं किया है। बीएसए का कहना है कि चूंकि याचीगण के स्नातक में 40 प्रतिशत से कम अंक हैं इसलिए उनकी नियुक्तियां अवैध है। हाईकोर्ट ने बीएसए को निर्देश दिया है कि चूंकि एनसीटीई की अधिसूचना का पैरा तीन सुप्रीमकोर्ट ने अवैध करार दिया है, इसलिए याचीगण की नियुक्ति एवं वेतन पर दो माह के भीतर निर्णय लिया जाए।