नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में पेड न्यूज मामले में दावा किया कि वर्ष 2008 में अखबरों में प्रकाशित हुई खबरें पेड न्यूज नहीं थी। सभी अखबारों ने स्वयं यह बात कही है कि उन्होंने अपनी मर्जी से खबरें छापी थी। उन्हें ऐसा करने के लिए किसी से रुपये नहीं मिले थे। उन्होंने चुनाव आयोग को चुनौती दी कि यदि वो पेड न्यूज थी तो पैसों का लेनदेन भी साबित करें। चुनाव आयोग ने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष चुनाव आयोग ने अपने आप ही यह मान लिया कि यह पेड न्यूज थी। शिकायतकर्ता को यह साबित करना होगा कि इस मामले में पैसों का लेनदेन हुआ है।
करीब दो घंटे तक अपना पक्ष रखते हुए नरोत्तम मिश्रा के वकील ने हाई कोर्ट को बताया कि आजकल मीडिया हाउस किसी न किसी विचारधारा से जुड़े होते हैं। वह स्वयं ही यह निर्णय लेते हैं कि किस प्रकार की खबरों को तवज्जो देना है और कौन सी खबर को हल्का करके दिखाना है। पेड न्यूज वो होती हैं जिसमें रुपयों का लेनदेन होता है। पेश मामले में ऐसा साबित ही नहीं हुआ है। मिश्रा की तरफ से कहा गया कि वर्ष 2013 में पहली बार उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जिसके चार साल बाद चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। कहा गया कि पेश मामले में जांच करने वाली चुनाव आयोग की कमेटी ही अवैध है।
चुनाव आयोग ने अपनी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें पक्ष रखने का मौका दिए बगैर फैसला सुना दिया। नरोत्तम मिश्रा की तरफ से दलीले पूरी होेन के बाद अब हाई कोर्ट ने 21 सितंबर को इस मामले में शिकायतकर्ता कांग्रेस नेता राजेंद्र भारती को अपना पक्ष रखने का मौका दिया है। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज के मामले में नरोत्तम मिश्रा को चुनाव अयोग ने अयोग्य करार दिया था। जिसके बाद मिश्रा राष्ट्रपति चुनाव में वोट भी नहीं डाल पाए थे।