राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब तो देश की सुप्रीम कोर्ट भी नेताओं अंधाधुंध तरीके से बढती सम्पत्ति से खफा है। राजनीतिक नेताओं की ही संपत्ति में पिछले पांच सालों के दौरान भारी इजाफा हुआ है। करीब 289 नेता ऐसे हैं जिनके खिलाफ केंद्र सरकार जांच भी कर रही है लेकिन इस मामले में जांच की प्रगति कहां तक हुई है इसकी कोई जानकारी अब तक किसी को नहीं मिली ह?. अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ‘लोक प्रहरी’ और ‘एडीआर’ नामक गैर सरकारी संगठनों की याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि इस पूरे मामले की रिपोर्ट 12 सितम्बर तक अदालत में पेश करे। इन 289 में लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं, जिनकी संपत्तियों में भारी वृद्धि हुई है। कुछ मामलों में तो नेताओं की संपत्ति में पांच सौ फीसद तक की बढ़ोतरी हुई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील पर नाराजगी भी जताई है।
इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की कथनी और करनी में साफ अंतर दिखाई दे रहा है। सरकार एक ओर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए चुनाव सुधारों की बात करती है। वहीं राजनीतिक दलों पर कड़ाई करने से अपने पांव पीछे खींच लेती है। दरअसल, संपत्ति में इजाफे का मसला कुछ विवादास्पद भी है। कुछ नेताओं का मानना है कि पिछले पांच साल के दौरान संपत्ति की कीमतों में इजाफा हुआ। इसलिए यह वृद्धि दिखाई दे रही है। फिर भी यह जांच का विषय है। लोकतंत्र में कानून के समक्ष सभी समान हैं। अलबत्ता सभी की संपत्तियों की निष्पक्ष जांच होनी ही चाहिए। लोकतंत्र की कई खूबियां हमारी व्यवस्था में रच-बस गई हैं। बावजूद इसके कानून के समक्ष समानता को हम पूरी तरह लागू नहीं कर पाए हैं।
प्रशासनिक प्रक्रिया में निर्धन और धनवान के बीच की दूरी बढती जा रही हैं। रसूख रखने वाले लोग कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर अपराध करने के बावजूद बच निकलते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केंद्र सरकार पर कुछ असर होना चाहिए। और उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भी जिन्होंने अवैध तरीके से संपत्ति अर्जित की हैं। अगर सरकार इसमें आनाकानी करती है तो स्पष्ट संदेश जायेगा कि सरकार की रूचि राजनीति को स्वच्छ करने और चुनाव सुधर में नहीं है। इस प्रक्रिया से चुनाव सुधार का मार्ग ही प्रशस्त नही होगा, वरन प्रजातंत्र मजबूत होगा। अभी नेता का व्यवहार जनता में आता दिखता है, जो देश के लिए घातक है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।