नई दिल्ली। कर्नाटक की वरिष्ठ महिला पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या एवं उसके बाद विचारधारा विशेष से जुड़े लोगों की मोहल्ला छाप प्रतिक्रियाओं ने इस मामले को एक नया रंग दे दिया है। मामला सारे देश में बहस का विषय बन गया है। बात अभिव्यक्ति की आजादी की हो रही है। कहा जा रहा है कि पत्रकारिता खतरे में है। गौरी लंकेश के कुछ लेख और संपादकीय भी सामने आए हैं। इनमें गौरी लंकेश ने भी कुछ इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया है जो प्रदर्शित करते हैं कि गौरी लंकेश आरएसएस एवं भाजपा के प्रति किस स्तर पर दुर्भावना से ग्रसित थीं।
एक लेख में उन्होंने अमित शाह को 'भगवाधारी गंजा' लिखा है। जबकि दर्जनों लेख ऐसे हैं जिसके शीर्षक में उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं को 'चड्डीवाले' संबोधित किया है। यह कुछ ऐसा है जैसे किसी को जान बूझकर चिढ़ाने की कोशिश की जा रही हो।
बीजेपी विधायक डीएन जीवराज ने एक सार्वजनिक सभा में बताया कि गौरी लंकेश ने एक लेख में 'चड्डीवालों की मौत का जश्न' लिखा था। यह अत्यंत आपत्तिजनक था। जीवराज का दावा है कि वो अक्सर ऐसे शब्दों का प्रयोग करतीं थीं जिससे अंतरआत्मा तक उबल पड़ती थी। गौरी लंकेश पत्रिका' के 30 अगस्त के अंक में गौरी लंकेश ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रति अपमान जनक शब्द का प्रयोग किया था। इस अंक की कवर स्टोरी का शीर्षक था 'कर्नाटक को जलाने आए भगवाधारी गंजे की कहानी'
हालांकि इस तरह के लेख इस बात की अनुमति नहीं देते कोई वर्ग विशेष का व्यक्ति या समूह भड़ककर कानून अपने हाथ में ले ले, या आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करने वाले की हत्या कर दे। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। कानूनी रास्ता अपनाकर उन्हे संयमित किया जा सकता है। हत्या कर देना निश्चित रूप से एक गंभीर अपराध है और किसी भी कारण से इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। गंभीर बात यह है कि जिस देश में जघन्य एवं क्रूरतम हत्या करने वाले अपराधी को भी सजा ए मौत देने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है, उसी देश में एक हत्या को उचित ठहराने का प्रयास किया गया। यह भारत और हिंदुओं की संस्कृति तो कतई नहीं है।