जो व्यक्ति नवरात्रि मे दुर्गा सप्तशती का पाठ नही कर सकता वे यदि केवल सिद्ध कुंजिका स्त्रौत्र का ही पाठ करें तो उन्हे सप्तशती के पाठ के समान फल मिलता है यह पाठ सिद्ध और सफलतादायक है इस पाठ के ऊत्कीलन,ध्यान,न्यास वगैरह की कोई आवश्यकता नही होती है,इस स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र के पाठ से मनुष्य जीवन में आ रही समस्या और विघ्न दूर होते है। मां दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्ट दूर होते है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित *सिद्ध कुंजिका स्तोत्र*
*शिव उवाच*
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
*ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:*
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि*
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन॥1॥
*नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धी धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।
विशेष
नवरात्रि की साधना परम ऊर्जा(दिव्य अग्नि) की साधना है यह नौ दिन अग्निपान करने के समान होते है जिस तरह अग्नि की तपन असहनीय होती है उस तरह नवरात्री व्रत कठिन होते है लेकिन अग्नि मे तपकर सोना जिस तरह कुंदन बन जाता है उसी तरह जो प्राणी नवरात्रि के तप करता है वह भी परम तेजस्विता धारण कर दिव्य तथा जीवन के उच्च स्तर पर पहुंच जाता है।
शिव साधना अवश्य करें
शिव शक्ति दोनो एक दूसरे के पूरक है जैसे अग्नि और जल का समन्वय।यदि हम भगवती की आराधना के साथ भगवान भोलेनाथ का भी जाप करें तो हमारे जप तप मे हमे उस तरह राहत मिलेगी जैसे भीषण गर्मी
मे जल की फुहार मिलने से होती है इसीलिये जब भी हम शक्ति की आराधाना करें शिव मंत्रजाप पूजन अवश्य करें।
*प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
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