
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से आए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की इस दलील से सहमति जताई कि हाई कोर्ट का पिछले साल 14 मार्च का आदेश त्रुटिपूर्ण है। इस मामले में न्यायालय की मदद कर रहे अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि जीवन को खतरे का आकलन करते हुए किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार का अपना आधार होता है।
राज्य सरकार ने याचिका में तर्क दिया था कि हाई कोर्ट के सभी पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को जीवनभर न्यूनतम 1-4 के सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराने का राज्य के हाई कोर्ट का आदेश बहुत ही अधिक त्रुटिपूर्ण है। राज्य सरकार का यह भी कहना है कि देशभर में अति विशिष्ट व्यक्तियों को उनके जीवन को खतरे के आकलन के आधार और गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुरूप सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने पिछले साल 14 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि हाई कोर्ट के प्रत्येक पूर्व मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों के आवास पर उन्हें एक निजी सुरक्षा अधिकारी सहित 24 घंटे सुरक्षा प्रदान की जाये। अदालत ने कहा कि खतरे के आकलन के आधार पर सुरक्षा बढ़ाई जानी चाहिए। राज्य के रिटायर जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को भी उनके रिटायर होने के बाद एक साल तक विस्तारित सुरक्षा दी जानी चाहिए।
इस रोक ने सुरक्षा मुहैया कराने के मापदन्डों पर पुनर्विचार के उस रास्ते को खोलने का प्रयास किया है। जो अभी एक तरफा है और समाज में व्यर्थ के आडम्बर और भय का संचार करता है। समाज और सरकार को भय मुक्त समान और सम्मानित व्यवहार की दिशा में काम करना चाहिए, इससे अच्छे समाज का निर्माण होगा। वर्तमान सुरक्षा प्रणाली दोष पूर्ण है इसमें राम रहीम जैसे लोग भी जेड प्लस सुरक्षा पा जाते है, और आम आदमी आतंकवादी घटना का शिकार होता है। राजनीति ने इस सुरक्षा प्रणाली को प्रतिष्ठा चिन्ह की हैसियत दे दी है, जिसका कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं है उल्टा राज्य कोष पर बोझ ही है। इस बोझ को कर दाताओं को ही वहन करना होता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।