नई दिल्ली। देश के शिक्षा तंत्र का इससे बड़ा फेलियर क्या होगा कि तमाम योजनाएं चलाए जाने के बावजूद गरीब और ग्रामीण बच्चे भी सरकारी स्कूलों में एडमिशन नहीं ले रहे हैं। देश भर के 1 लाख स्कूल ऐसे हैं जहां 90 प्रतिशत तक सीटें खाली हैं। मोदी सरकार को लगता है कि ऐसे स्कूलों को बंद करना ही बेहतर है। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का खर्च निजी स्कूलों से भी ज्यादा है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में तकरीबन एक लाख स्कूलों में बच्चों की संख्या औसतन 12.7 है। सरकार इन स्कूलों के संचालन और वेतन पर 9440 करोड़ रुपये का खर्च कर रही है। प्रति बच्चे पर सालाना खर्च औसतन 80 हजार रुपये है। केंद्रीय विद्यालयों में प्रति बच्चे पर करीब 30 हजार रुपये सालाना खर्च है।
साढ़े तीन लाख और स्कूल भी संकट में
इन एक लाख स्कूलों की समस्या तो गंभीर है, लेकिन 3.70 लाख स्कूल ऐसे भी हैं, जिनमें औसत छात्र संख्या 29 है। इन स्कूलों के सालाना वेतन का व्यय 41,630 करोड़ और प्रति छात्र लागत 40,800 रुपये है। स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है। केंद्र ने राज्यों से इनोवेटिव मॉडल अपनाने को कहा है। उत्तराखंड, राजस्थान समेत कई राज्य नए प्रयोग कर रहे हैं। उत्तराखंड में कम बच्चों वाले चार-पांच स्कूलों को मिलाकर एक स्कूल किया जा रहा है।