तिवरंतपुरम। केरल में अति प्राचीन 1284 मंदिरों में पुजारियों के चयन में आरक्षण लागू हो गया है। पहली नियुक्ति प्रक्रिया समपन्न हो गई जिसमें 62 पुजारियों का चयन किया गया। इसमें 36 पद आरक्षित थे जिन पर दलित एवं पिछड़ा वर्ग जाति के लोगों को नियुक्त किया गया। बता दें कि इससे पहले तक मंदिरों में पुजारियों का चयन धर्मशास्त्र एवं प्राचीन परंपराओं के आधार पर हुआ करता था। पुजारियों के पद पर ब्राह्मण समाज का एकाधिकार कभी नहीं रहा परंतु अलग अलग मंदिरों की अलग अलग परंपराओं के अनुसार चयन किया जाता रहा है। सामान्यत: इस पद के लिए ब्राह्मण समाज के व्यक्ति को चुना जाता है क्योंकि धर्मशास्त्रों में ऐसे निर्देश दिए गए हैं।
केरल में 1284 प्राचीन मंदिरों का रखरखाव और ध्यान रखने वाली संस्था त्रावनकोर देवस्वाम बोर्ड ने मंदिरों के पुजारियों का चयन आरक्षण की प्रक्रिया के तहत किया है। बोर्ड के अध्यक्ष राजगोपालन नायर ने कहा कि यह पहला मौका है जब मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति के लिए आरक्षण की प्रक्रिया को अपनाया गया है। उन्होंने कहा, “हमने कुछ दिनों पहले बैकवर्ड क्लास के कुछ पुजारियों की नियुक्ति की थी जिन्होंने मेरिट के जरिए इस बार चयन प्रक्रिया का निर्धारण किया। त्रावनकोर देवस्वाम बोर्ड की स्थापना 1949 में हुई थी और पुजारियों के लिए एस सी और ओबीसी के चयन की मांग दशकों से हो रही थी लेकिन इसके काफी विरोध के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो सका था लेकिन आज हम ऐसा संभव कर सके हैं।
नायर के अनुसार लोक सेवा आयोग की प्रक्रिया के तहत ही पुजारियों की नियुक्ति की गई है। अभी ये नियुक्ति प्रक्रिया सिर्फ त्रावनकोर बोर्ड के लिए की गई है लेकिन भविष्य में कोचीन और मालाबार बोर्ड के लिए भी पुजारियों की नियुक्ति भी इसी प्रक्रिया के तहत की जाएगी। त्रावनकोर बोर्ड के प्रेसिडेंट ने भी निर्णय की सराहना की और कहा कि पुजारियों के तौर पर दलितों और बैकवर्ड क्लास की नियुक्ति बेहद जरूरी थी और नियुक्ति बोर्ड ने जिन लोगों का चयन किया है उन्हीं की नियुक्ति की जाएगी।
गोपालकृष्णन ने सबरीमाला अयप्पा टेंपल के बारे में भी बात की जिसमें दलित पुजारी की नियुक्ति का मामला हाइकोर्ट में है। गोपालकृष्णन के अनुसार पुराने नियमों के अनुसार वहां सिर्फ ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति की जा सकती है ऐसे में हाइकोर्ट के निर्णय अनुसार वहां नियुक्ति पर फैसला लिया जाएगा।