भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस का चेहरा साफ करने के लिए पुलिस मुख्यालय की ओर से कई प्रयास किए जा रहे हैं परंतु मैदानी अमला सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा। पिछले 5 साल में विभिन्न प्रकार की शिकायतों की जांच के बाद मप्र पुलिस से 835 बर्खास्त और 263 पुलिसकर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है। पांच साल में 6822 विभागीय जांच में 5556 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को गंभीर सजा दी गईं। यानी विभाग ने हर साल औसतन 1100 पुलिसकर्मियों (सिपाही से इंस्पेक्टर तक) के खिलाफ कार्रवाई की गई है। बावजूद इसके मैदानी पुलिस स्टाफ में कोई सुधार नहीं हुआ है।
पुलिस मुख्यालय ने तंग आकर 20 साल की नौकरी और 50 साल की उम्र के बाद भी लापरवाही कर रहे पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री ने देशभर के डीजीपी के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कहा था कि 20-50 का फॉर्मूला लागू किया जाए। इधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी प्रदेश में ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, जिनके खिलाफ गंभीर शिकायतें हैं और वे काम को लेकर गंभीर नहीं हैं।
जोनल पुलिस महानिरीक्षकों के साथ हुई बैठक में डीजीपी ने 20-50 का फॉर्मूला सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद 20-50 के दायरे में आने वाले पुलिसकर्मियों का रिकॉर्ड खंगाला गया है। सभी जिलों को 15 सितंबर तक इसकी जानकारी पुलिस मुख्यालय को देनी थी।
पिछले एक साल में 1179 विभागीय जांच के आदेश हुए। जिसमें 1464 पुलिसकर्मियों की डीई हुई। भ्रष्टाचार के आरोप में 9 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त किया गया, जबकि काम में लापरवाही, संदिग्ध आचरण, गैर हाजिरी, मारपीट एवं अभद्र व्यवहार के आरोपों में 169 को बर्खास्त या अनिवार्य सेवानिवृत्त किया गया। वर्तमान में सिपाही से निरीक्षक तक के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 171 विभागीय जांच लंबित हैं। जबकि 965 को गंभीर सजा दी गई।