ये है पटाखों का इतिहास, 1667 में भी लगा था आतिशबाजी पर प्रतिबंध

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दीपावली के अवसर पर पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसे लेकर देश भर में बहस चल रही है। कई प्रतिष्ठित लोग इसे अन्यायपूर्ण आदेश बता रहे हैं। आइए हम बताते हैं कि पटाखों का अविष्कार कैसे हुआ और सुप्रीम कोर्ट से पहले भी भारत में आतिशबाजी पर प्रतिबंध कब व किसने लगाया था। 

चीन में हुआ पटाखों का अविष्कार
दरअसल पटाखों का आविष्कार एक दुर्घटना के कारण चीन में हुआ। मसालेदार खाना बनाते समय एक रसोइए ने गलती से साल्टपीटर (पोटैशियम नाईट्रेट) आग पर डाल दिया। इससे उठने वाली लपटें रंगीन हो गईं, जिस से लोगों की उत्सुकता बढ़ी। फिर रसोइए के प्रधान ने साल्टपीटर के साथ कोयले व सल्फर का मिश्रण आग के हवाले कर दिया, जिससे काफी तेज़ आवाज़ के साथ रंगीन लपटें उठी। बस, यहीं से आतिशबाज़ी यानी पटाखों की शुरुआत हुई। इतिहास में पटाखों का पहला प्रमाण वर्ष 1040 में मिलता है, जब चीनियों ने इन तीन चीज़ों के साथ कुछ और रसायन मिलाते हुए कागज़ में लपेट कर ‘फायर पिल’ बनाई थी।

यूरोप में पटाखों का चलन सबसे पहले वर्ष 1258 में हुआ था। यहां सबसे पहले पटाखों का उत्पादन इटली ने किया था। जर्मनी के लोग युद्ध के मैदानों में इन बमों का इस्तेमाल करते थे। इंग्लैंड में पहली बार इनका उपयोग समारोहों में किया गया। महाराजा चार्ल्स (पंचम) अपनी हरेक विजय का जश्न आतिशबाज़ी करके मनाते थे। इसके बाद 14 वीं शताब्दी के शुरू होते ही लगभग सभी देशों ने बम बनाने का काम शुरू कर दिया। अमेरिका में इसकी शुरूआत 16वीं शताब्दी में मिलीट्री ने की थी। पश्चिमी देशों ने हाथ से फेंके जाने वाले बम बनाए। बंदूके और तोप भी इसी कारण बनी थी।

भारत में कब आए पटाखे
भारत में उत्सवों के दौरान आतिशबाजी का चलन तो अंग्रेजी शासनकाल में शुरू हुआ परंतु बारूद के धमाके इससे बहुत पहले शुरू हो गए थे। मुगलों ने जब भारत पर हमला किया तो वो अपने साथ बारुद भी लाए थे। इस बारूद से वो बम बनाते थे और भारतीय सेनाओं पर हमला करते थे। बाद में मुगल और कुछ भारतीय राजा जश्न मनाने के लिए घातक बारूद के बम से धमाका करने लगे। उन दिनों बम या बंदूक से फायर करना रसूखदारों के जश्न में शामिल हुआ। ज्यादातर मुगला और उनके मित्र राजाओं ने इसे अपनी परंपरा बनाया। 

भारत में सबसे पहले कब लगा था आतिशबाजी पर प्रतिबंध
8 अप्रैल, 1667 को पहली बार औरंगजेब के आदेश पर पटाखों के इस्तेमाल को भारत में बैन किया गया था। औरंगजेब ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि देश में कोई भी गोला-बारूद या आतिशबाजी का उपयोग नहीं करेगा। इस प्रतिबंध के क्रियान्वयन का बीकानेर के पूर्व राजा महाराजा गंगा सिंह ने समर्थन किया था जिन्होंने एक एक्ट का मसौदा तैयार किया, जिसमें उत्सव के लिए पटाखे का इस्तेमाल न करने के लिए कहा गया क्योंकि यह पर्यावरण और संपत्ति दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

दीपावली से पटाखों का क्या रिश्ता है
दीपावली जैसे त्योहार से पटाखों या आतिशबाजी का कोई रिश्ता नहीं है। मूलत: दीपावली हिंदू धर्म का ठीक वैसा ही त्यौहार है जैसे कि महाशिवरात्रि या अन्य त्यौहार। शास्त्रों में लिखा है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए एवं आमंत्रित करने के लिए दीपावली पर विधिवत पूजा एवं यज्ञ हवन का विधान है। कथाओं के अनुसार 5000 साल पहले भगवान श्रीराम लंका में रावण का वध करके इसी दिन वापस आए थे। उनके स्वागत में लोगों ने घी के दीपक जलाए। तब से दीपावली के दिन दीपक जलाने की परंपरा आई। अंग्रेजी शासनकाल में चूंकि वो उत्सव मनाने के लिए आतिशबाजी चलाते थे इसलिए भारतीयों ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया। पहले राजा और धनाढ्य लोग चलाते थे अब आम नागरिक भी चलाने लगे हैं। हालात यह है कि कुछ लोग आतिशबाजी को ही लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने का जरिया मानते हैं। 

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!