राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह रिपोर्ट डराने वाली है। इस साल के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत तीन पायदान नीचे लुढ़का है, भारत उत्तर कोरिया से भी पिछड़ गया है। 119 देशों के आंकड़ों को मिलाकर तैयार इस सूचकांक में भारत 100 वें स्थान पर है और इसे ‘गंभीर श्रेणी’ में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ‘चूंकि दक्षिण एशिया की तीन-चौथाई आबादी भारत में रहती है, इसलिए इस मुल्क में भूख के हालात दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सफलता पर व्यापक असर डालते हैं।’ भूख से लड़ने के मामले में भारत की इस शर्मनाक तस्वीर ने दक्षिण एशिया को इस मोर्चे पर पीछे धकेल दिया है। वैसे पडौसी पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के तमाम देशों का प्रदर्शन इसमें अच्छा दिख रहा है। सूचकांक में पाकिस्तान जहां 106वें पायदान पर है, तो चीन 29वें, नेपाल 72वें, म्यांमार 77वें, श्रीलंका 84वें और बांग्लादेश 88वें स्थान पर है। भारत में यह पिछडापन चिंताग्रस्त करता है।
पिछले साल भारत इस सूची में 97वें स्थान पर था। तब 118 विकासशील देशों को मिलाकर यह सूचकांक तैयार किया गया था और भारत हमेशा की तरह पाकिस्तान को छोड़कर अपने तमाम पड़ोसियों से पीछे थे। वर्ष 2006 में जब पहली बार यह सूची बनी थी, तब भी हमारा स्थान 119 देशों में 97वां था। अब हमारा स्थान और नीचे है। इस साल जीडीपी विकास दर के कुछ नीचे जाने के दावे किए जा रहे हैं, जिसे सरकार महज तात्कालिक गिरावट बता रही है। भारत में पिछला औसतन जीडीपी औसतन आठ प्रतिशत रहा है, फिर भी देश में भूख की समस्या बढ़ी है।
ज्यादा भूख का मतलब है, ज्यादा कुपोषण। देश में कुपोषण की दर क्या है, इसका अगर अंदाज लगाना हो, तो लंबाई के हिसाब से बच्चों के वजन का आंकड़ा देख लेना चाहिए। आज देश में 21 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान हैं, जहां 20 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। ग्रामीण भारत का खान-पान अब पहले से काफी कम हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 1975-79 की तुलना में आज औसतन ग्रामीण भारतीय को 500 कैलोरी, 13 ग्राम प्रोटीन, 5 मिलीग्राम आयरन, 250 मिलीग्राम कैल्सियम व करीब 500 मिलीग्राम विटामिन-ए कम मिल रहा है। भारत की लगभग 70 प्रतिशत फीसदी आबादी गाँव में ही बसती है। भारत में तीन वर्ष से कम उम्र के नौनिहालों को औसतन 80 मिलीलीटर दूध ही रोजाना मिल रहा है, जबकि उन्हें जरूरत 300 मिलीलीटर की है। इस सर्वे में 35 प्रतिशत ग्रामीण वयस्क कुपोषित पाए गए और 42 प्रतिशत बच्चे सामान्य से कम वजन के।
दुर्भाग्य देश में अब तक उपयुक्त आर्थिक नीति नहीं बन सकी है। गरीबी, भूख और कुपोषण से लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती, जब तक कि खेती पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाएगा। राजनीतिक दलों को मिलकर सोचना चाहिए, सरकार बनाने बिगाड़ने से ज्यादा जरूरी है. देश का बचपन संवारना।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।