राष्ट्र को एक अर्थ नीतिकार की जरूरत है ?

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के आर्थिक मोर्चे पर  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जवाब से आर्थिक परिदृश्य का कोई संतोषजनक/ समाधान कारक चित्र नही उभरा है। यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने जो बातें अब खुलकर कही हैं, वही बात आर्थिक टीकाकार पिछले कई महीनों से कह रहे हैं। बमुश्किल एक माह पहले भाजपा के ही एक अन्य नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने भी सरकार के आर्थिक प्रबंधन की खुलकर आलोचना की थी। अंतर इतना रहा की शौरी और सिन्हा ने अप्रत्याशित रूप से कड़ी भाषा में आलोचना की और उनकी बात से सार्वजनिक ध्यान आकृष्ट हुआ। सिन्हा ने तो यहाँ तक  कहा कि इस बारे में उनकी पार्टी के कई अन्य नेताओं से बात हुई है जो डर के मारे सार्वजनिक रूप से अपनी बात नहीं कह पा रहे। सिन्हा का आलेख देश के एक प्रमुख अखबार में छपा था जिसकी अपनी प्रतिष्ठा है। तब सरकार की रक्षात्मक प्रतिक्रिया अपरिहार्य हो गई थी, और प्रधानमंत्री को बहस में उतरना पड़ा।

तथ्यों पर गौर करें, तो लगातार पांच तिमाहियों से वृद्घि दर घट रही है, छंटनी हो रही है और मांग में कमी आ रही है। मुख्य धारा के मीडिया ने भी सतर्कतापूर्वक ही सही लेकिन आलोचनात्मक आंकड़े पेश करने शुरू कर दिए हैं। यह सच है कि शहरी मध्य वर्ग और सोशल मीडिया पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता लेकिन इन हलकों में भी बातचीत का विषय बदल रहा है।

अभी पिछले वर्ष तक भारत दुनिया की सबसे तेज विकसित होती अर्थव्यवस्था वाला देश कहा जा रहा था। आशावादी वर्ग की यही प्रमुख दलील भी होती थी। कारोबारी समाचार जगत ने बदलाव की पूरी प्रतीक्षा की। प्रमुख कारोबारी समर्थकों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री के जीवंत नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी। अब वही समुदाय निराशाजनक बातें कर रहा है। अस्पष्ट  परिदृश्य और मांग की कमी की बात अब खुलकर सामने आ रही है। अभी पिछले साल के अंत तक मोदी सरकार इन बातों को लेकर कतई अपराजेय और आश्वस्त मानी जा रही थी। अब उसकी भी यही चिंता  साफ़ दिखती है कि वृद्घि को कैसे आगे बढ़ाया जाए और रोजगार कैसे तैयार हों? 

भाजपा के अनुशासनिक कवच के भीतर जो संदेह अब तक दबे ढके थे वे अब एकदम मुखर हो चुके हैं। जनवरी तक किसी को यह संदेह भी नहीं था कि भाजपा को 2019 के चुनाव में किसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। अब पार्टी में इस भरोसे से इतर कुछ तो भी चल रहा है। यह बात अलग है कि विपक्ष की खस्ता हालत के चलते कुछ होता नहीं दिखता। राहुल गांधी और कांग्रेस भी  इस अवसर का लाभ लेते नहीं दिख रहे है। राष्ट्र को  एक अर्थ नीतिकार की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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