दुर्गम मोर्चे और सरकार का कदम

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत सरकार भारत-चीन सीमा पर आईटीबीपी की 50 ऐसी चौकियां बनाने जा रही है, जिनमें तकनीक की मदद से अंदर का तापमान पूरे साल 20 डिग्री बनाए रखा जाएगा। चीन ही नहीं, पाकिस्तान सीमा पर भी ऐसे कई इलाके हैं, जहां हमारे दर्जनों सैनिकों को तकरीबन हर साल सिर्फ कुदरत के कहर के कारण जान गंवानी पड़ती है। इस वर्ष की शुरु आत में पहले तो 26  जनवरी को गुरेज और सोनमर्ग में 15 सैनिक हिमस्खलन (एवलॉन्च) की चपेट में आ गए थे, फिर 28 जनवरी को माछिल सेक्टर में पांच सैनिक ट्रैक के धंसने से बर्फ के नीचे दब जाने से मारे गए थे। यह तकरीबन हर साल का किस्सा है। 

पिछले साल भी फरवरी में सियाचिन के नॉर्थ ग्लेशियर में एवलॉन्च की चपेट में आकर 19-मद्रास रेजिमेंट के 10 जवानों की मौत हो गई थी। ऐसी हर शहादत के बाद पूछा जाता है कि क्या किसी तरह वीर जवानों की ऐसी शहादत टाली नहीं जा सकती है? वर्ष 1984 से सियाचिन पर भारत ने अपना अधिकार किया है, हमारे 900 से ज्यादा जवानों की मौत की का कारण कठिन मौसम रहा है।

भारत, चीन और पाकिस्तान के कब्जे वाले उत्तरी कश्मीर के इस इलाके 22 ग्लेशियर हैं, जिनकी औसत ऊंचाई 11400 से 20000 फीट तक है। यहां का औसत तापमान शून्य से 200 डिग्री नीचे तक चला जाता है। यहां इंसान ही नहीं, मशीनें भी अपनी क्षमता का महज एक चौथाई काम कर पाती हैं। मौसम की जटिलताओं के कारण, अच्छे-से-अच्छा भोजन लेने पर भी वहां तैनात सैनिकों का वजन प्रति महीने 5 से 8 किलो घटता रहता है। हालांकि उन्हें वहां बनाए रखने के लिए सरकार को औसतन पांच करोड़ रुपये प्रतिदिन और एक हजार करोड़ से अधिक रकम सालाना खर्च करनी पड़ती है। यह हमेशा सोचा जाता रहा है कि क्या कोई उपाय ऐसा नहीं है, जो यह पैसा और कीमती जानें बचा सके? 

साफ है कि ऐसे इलाके में कुदरत सबसे बड़ी दुश्मन है। ऐसे में किसी भी नजरिये से अक्लमंदी यही है कि यहां कायम बेकार की तनातनी से पीछा छुड़ाया जाए। पर सैनिक यदि वहां रहते भी हैं तो अच्छा होगा कि उन्हें सिर्फ कुदरत के हवाले नहीं छोड़ा जाए। उन्हें वातानुकूलित चौकियां, शरीर को गर्म रखने वाले आधुनिक उपकरण के साथ लैस किया जाए। भारत सरकार की यह पहल सराहनीय है, इसके परिणाम भी बेहतर होंगे। पडौसियों से विभिन्न स्तर पर हो रही वार्ताओं में इसे विषय बनाकर कुछ मोर्चों पर स्थाई शांति का माहौल बनाने की पहल की जा सकती है। कुदरत का कहर तो उनके सैनिकों को भी भुगतना होता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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