
बैंकों की परिभाषा में बैंकों के लिए इसकी भूमिका उनकी वित्तीय स्थिरता की गारंटी जैसी होती है। अप्रैल 2010 के 25 प्रतिशत से घटते-घटते यह अनुपात अभी 19.5 प्रतिशत तक पहुंचा है। बैंकों के पास कर्ज देने के लिए रकम की कोई किल्लत नहीं है, एसएलआर घटाकर उन्हें थोड़ा और हाथ खोलने का मौका दिया गया है। नई नीति की खास बात यह है कि रिजर्व बैंक ने इस वित्त वर्ष के लिए अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 7.3 फीसदी से घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है।
नई मौद्रिक नीति लाने से पहले सरकार और कुछ उद्योग मंडल चाहते थे कि ब्याज दरें कम हों, लेकिन रिजर्व बैंक फूंक-फूंककर कदम रखना चाहता है। कहीं सूखा कहीं बाढ़ की स्थितियों से एक तरफ खाद्य पदार्थों की महंगाई बढ़ने की आशंका है, दूसरी तरफ कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे के आसार हैं। आरबीआई को लगता है कि आने वाले दिनों में महंगाई अपने मौजूदा स्तर से और बढ़ेगी। उसका यह भी मानना है कि किसानों की कर्जमाफी से राजकोषीय घाटे पर असर पड़ेगा, जबकि केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों को जो एचआरए दिया है, उससे घरेलू खपत में बढ़ोतरी होगी और इकॉनमी की रफ्तार सुधरेगी। मौद्रिक समिति की साझा राय है कि जीएसटी के लागू होने का अर्थव्यवस्था पर तात्कालिक तौर पर नकारात्मक असर पड़ा है और खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए कठिनाई पैदा हुई हैं। देश में निवेश की गतिविधियों पर भी इसका कुछ असर पड़ेगा, जो पहले से ही दबाव में हैं। हालांकि आरबीआई की राय है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में यह असर कम होगा। सरकारी खर्चों के मामले में आरबीआई का संदेश इस वित्त वर्ष के बचे हुए पांच-छह महीनों में फूंक-फूंक कर कदम रखने का ही है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।