
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी की संपत्ति में 16 हजार गुना की वृद्धि पर सवाल खड़ा है कि क्या मौजूदा तथ्यों आलोक में सीबीआइ, ईडी और केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियां जय शाह के खिलाफ जाँच कार्रवाई करेंगी। या इस बात का इंतजार करेंगी कि जय शाह द्वारा दायर 100 करोड़ रुपए के दीवानी और आपराधिक मुकदमें का क्या फैसला आता हैं।
उपलब्ध तथ्य कहते हैं कि अमित शाह के बेटे जय शाह की एक कंपनी है टैंपल एंटरप्राइज लिमिटेड, जय शाह इस कंपनी के डायरेक्टर हैं। वर्ष 2004 में बनाई गई यह कंपनी वर्ष 2014 तक तो घाटे में थी लेकिन वित्त वर्ष 2014-15 के आते-आते यह मुनाफे में आ गई। उस समय इसकी कुल संपत्ति थी 50 हजार रुपए लेकिन यह संपत्ति 2015-16 में बढ़कर सीधे 80 करोड़ रुपए पहुंच गई। इस कंपनी को 15.78 करोड़ रुपए का लोन भी मिल गया और फिर अक्तूबर 2016 में यह कह कर इस कंपनी को बंद कर दिया गया कि यह घाटे में आ गई है। भाजपा की सरकार बनने के साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बेटे जय शाह की इस कंपनी संपत्ति में एक साल के भीतर 16 हज़ार गुना का इजाफा हो गया। कैसे ? उसकी पैरोकारी में उतरे मंत्री पीयूष गोयल तो खुद चार्टर्ड एकाउंटेंट है। अदालत जाने की घोषणा करने के स्थान पर “धन संवर्धन की इस तकनीक” पर प्रकाश डालते तो बेहतर होता।
अमित शाह के बेटे जय शाह की संपत्ति में यह बढ़ोतरी केवल एक ही कंपनी में नहीं हुई। वह कुसुम फिनसर्व एलएलपी नामक कंपनी में भी 60 प्रतिशत के भागीदार हैं और उस कंपनी को लगभग 46 करोड़ रुपए की राशि तीन अलग-अलग लोन के तौर पर मिली। केआइएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज से 2.6 करोड़ रुपए का कर्ज, कालूपुर कमर्शियल सहकारी बैंक से 25 करोड़ रुपए का कर्ज और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजंसी (आइआरईडीए) से 10.35 करोड़ रुपए का ऋण मिला। कहा जा रहा है पीयूष गोयल तब ऊर्जा मंत्री थे, उसी वक्त यह कर्ज कंपनी को गैर परंपरागज ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने के लिए दिया गया और इस हकीकत के बावजूद दिया गया कि इस कंपनी को ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। यह कंपनी तो शेयरों की खरीद-बिक्री के लिए बनाई गई थी।
सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक होने पर ये राजपुत्र जिस तरह से तरक्की करते है सारे प्रतिमान ध्वस्त हो जाते हैं। सत्ता बदलते ही तमाम एजेंसियों का काम, जाँच और मुकदमा दायर करना हो जाता है। न तो तथ्य सामने आने पर जाँच एजेंसी खुद जागती है और न राजनीतिक संप्रभु। सत्ता से उतरते ही सब मामले खुलते हैं वह भी इस प्रतियोगिता के साथ देखो उसकी कमीज कितनी काली है। मामला बेटे का हो या दामाद का तबके या अबके प्रधानमंत्री बताएं कि क्या वे इन मामलों जांच के आदेश खुद नहीं दे सकते थे या हैं। न्यायालय से भी अर्ज है सुबूत खुर्द-बुर्द होने का अवसर न दें। राष्ट्र हित तो यही है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।