
उनके दोस्त ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि जब कोटा में इनके माता-पिता का देहांत हो गया तब गिर्राज गुना आया। पढ़ाई पूरी करने के बाद कोटा वापस चला गया। वहां जीवनयापन के लिए सर्किल चौराहे पर तीन साल तक चाय की दुकान चलाई। इसी दौरान वो जैन मुनि कल्याण सागर जी केे संपर्क में आया और उसने दीक्षा ले ली। दोस्त कहते हैं कि दिगम्बर संत 13 पंथी होते हैं, जो पूरी तरह से नग्न होते हैं और हाथ उठाकर आर्शीवाद देते हैं, लेकिन जैन मुनि शांतिसागर महाराज 20 पंथी थे, जो झाड़-फूंक और टोना-टोटका विश्वास करते हैं।
पूरी कर पाया बीकॉम की डिग्री
राजेश के अनुसार, वह शासकीय स्नातकोत्तर कॉलेज में पढ़ाई करता था। उसने बीकॉम में एडमिशन लिया था। ज्यादातर समय दोस्तों के साथ गुजरता था, ऐसे में वह पढ़ाई में कमजोर ही रहा। 22 साल में भी वह ग्रेजुएशन नहीं सका था। मंदसौर में दीक्षा लेने के बाद वह गिरिराज शर्मा से जैन मुनि शांतिसागर बन गया। उस समय तक वे अपनी बीकॉम की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाया था।
हर नया फैशन ट्राई करता था
दोस्त ने बताया कि दोस्त ने बताया कि गिरिराज मौज-मस्ती में जीने वाला लड़का था। खूब क्रिकेट खेलता था। पढ़ाई में औसत था। उनके दोस्तों का ग्रुप शहर में उन दिनों के सबसे फैशनेबल युवाओं में शुमार था। कपड़े हों या हेयर कट, नए ट्रेंड को सबसे पहले यही ग्रुप अपनाता था।
संन्यासी बनने से पहले मिलने आया था
मुनि के दोस्त के अनुसार, संन्यासी जीवन में दाखिल होने के तीन दिन पहले गिरराज गुना आया था। वह दो दिन गुना में ही रहा। पूरा समय दोस्तों के साथ बिताया परंतु किसी को कुछ नहीं बताया। तीसरे दिन किसी से मिले बिना ही गुना से चला गया। उसके बाद उसने कभी गुना नहीं आया। अखबारों से पता चला कि गिरराज ने दीक्षा ले ली है और वह अब जैन मुनि शांति सागर के नाम से जाना जाता है।