नई दिल्ली। कुछ दिनों पहले सत्ताधारी भाजपा में वर्ग विशेष के नेताओं ने दीपावली के अवसर पर मात्र दिल्ली में पटाखों की बिक्री बैन किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजियां कीं थीं। अब जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेता भी ऐसा ही कुछ कर रहे हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 35ए को रद्द करने का फैसला किया तो घाटी में फलस्तीन जैसा जनांदोलन किया जाएगा। अलगाववादी नेताओं ने आम जनता से अपील की है कि वो इसके लिए तैयार रहें। याद दिला दें कि यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
श्रीनगर में एक संयुक्त बयान में अलगाववादी नेताओं-सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक ने लोगों से अनुरोध किया कि यदि सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगों के हितों और आकांक्षा के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो वे लोग एक जनांदोलन शुरू करें।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 35ए भारतीय संविधान में एक ‘प्रेंसीडेशियल आर्डर’ के जरिए 1954 में जोड़ा गया था। यह राज्य विधानमंडल को कानून बनाने की कुछ विशेष शक्तियां देता है। अलगाववादी नेताओं ने कहा कि राज्य सूची के विषयों से छेड़छाड़ का कोई कदम फलस्तीन जैसी स्थिति पैदा करेगा। उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम बहुल राज्य की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए एक साजिश रची जा रही है। अनुच्छेद 35 ए में संशोधन की किसी कोशिश के खिलाफ राज्य के हर तबके के लोग सड़कों पर उतरेंगे। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा राज्य में जनमत संग्रह की प्रक्रिया को नाकाम करने की कोशिश कर रही है।
क्या है फलस्तीन विवाद
इस्राइल और फलस्तीन के बीच विवाद 20वीं सदी में शुरू हुआ। यह विवाद काफी बड़ा है और कई मुद्दों को अपने भीतर समेटे हुए है। यीशुव (फलस्तीन में रहने वाले यहूदी) और ऑटोमन और ब्रिटिश शासन के तहत फलस्तीन में रहने वाली अरब आबादी के बीच हुए विवाद को मौजूदा टकराव का हिस्सा माना जाता है। इस्राइल और फलस्तीन के टकराव में ये मुद्दे शामिल हैं - एक-दूसरे के अस्तित्व को मान्यता, सीमा, सुरक्षा, जल अधिकार, येरूशलम पर नियंत्रण, इस्राइली बस्तियां, फलस्तीन का आजादी आंदोलन और शरणार्थियों की समस्या का हल।
तारीखों के आइने में यह विवाद
1914 : फलस्तीन में उस वक्त पांच लाख अरब और यूरोप से आए करीब 65,000 यहूदी रहते थे। फलस्तीन उस दौरान टर्की के ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था।
1917 : ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री लॉर्ड बलफोर ने यहूदियों से फलस्तीन को उनका घर बनाने का वादा किया।
1918 : प्रथम विश्व युद्ध के बाद फ्रांस ने सीरिया, ब्रिटेन ने फलस्तीन और जॉर्डन पर शासन किया।
1922-39 : यूरोप से तीन लाख से ज्यादा यहूदी फलस्तीन पहुंचे। हिंसक टकराव शुरू हुआ। ब्रिटेन ने अरबों के विरोध को दबा दिया।
1947-48 : 15 मई, 1948 को इस्राइल को देश का दर्जा मिला। इस्राइल की सेना ने अरबों के विरोध को कुचल डाला। लाखों की तादाद में फलस्तीनी पड़ोसी देशों में पनाह लेने को मजबूर हुए।
1964 : फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) बना। 1969 में यासिर अराफात के अल फतह ने फलस्तीन की सत्ता संभाली।
1967 : इस्राइल ने अरबों पर हमला बोला। जंग छह दिन चली। इस्राइल ने इजिप्ट से सिनाई, सीरिया से गोलन हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और येरूशलम छीन लिया।
1973 : सीरिया और इजिप्ट ने इस्राइली पर हमला किया, नाकामयाब रहे।
1978 : इजिप्ट और इस्राइल ने अमेरिका में कैंप डेविड संधि पर हस्ताक्षर किया।
1982 : इस्राइल ने लेबनान पर हमला किया। बेरूत में सैकड़ों फलस्तीनी शरणार्थियों को मौत के घाट उतार दिया गया। उसने पीएलओ को बाहर निकाल फेंका।
80' के दशक के शुरुआती सालों में : वेस्ट बैंक में फलस्तीन की जमीन पर इस्राइल यहूदी बस्तियां बसाता रहा।
1987 : इस्राइली कब्जे के खिलाफ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के फलस्तीनियों ने आंदोलन शुरू किया।
1993 : ओस्लो संधि हुई। इसमें पीएलओ और इस्राइल ने एक-दूसरे को मान्यता दी। वेस्ट बैंक और गाजा में फलस्तीन को एक निश्चित सीमा तक शासन का अधिकार मिला।
2000 : इस्राइल ने वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। दूसरा आंदोलन शुरू हुआ। फलस्तीनी उग्रवादियों ने आत्मघाती हमले शुरू कर दिए।
2004 : इस वक्त तक 40 लाख से ज्यादा फलस्तीनी शरणार्थी सीरिया, लेबनान, जॉर्डन, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में रह रहे थे।
2005 : इस्राइल गाजा से हट गया। हमास ने चुनावों में जीत हासिल की।
2008 : इस्राइल और फलस्तीन में सशस्त्र संघर्ष शुरू हुआ। तीन हफ्ते चली जंग में हजारों फलस्तीनी मारे गए।
2011 : फलस्तीन संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया। इसमें फलस्तीनी राज्य को स्वीकार्यता दिए जाने की मांग की गई। नवंबर में उसे यूनेस्को की सदस्यता हासिल हुई।
2012 : मार्च में फलस्तीनी उग्रवादियों ने रॉकेट के जरिये हमले किए। जवाबी कार्रवाई में इस्राइल ने हवाई हमले किए। नवंबर में इस्राइल के हमले में हमास का दूसरा सबसे बड़ा नेता अहमद जबारी मारा गया। हमास ने इस्राइल पर हजारों रॉकेट दागे।
2012 : अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारी बहुमत से फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र का गैर सदस्य पर्यवेक्षक (नॉन-मेंबर ऑब्जर्वर स्टेट) राष्ट्र बनाया। अब फलस्तीन को उतनी ही कूटनीतिक ताकत हासिल है जितनी कि वैटिकन के पास है।