राकेश दुबे@प्रतिदिन। पंजाब की गुरदासपुर लोक सभा और केरल की वेंगारा विधानसभा सीट के उपचुनावों के नतीजे कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जाने से उसके नेता और कार्यकर्ता दोनों उत्साहित हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है। ऐसा लगने के कारण भी है। पर वैसे नहीं है जैसे अर्थ कांग्रेस निकाल रही है। कांग्रेस तो यहाँ तक कहने में नहीं चूक रही कि 2019 के नतीजे उसके पक्ष में होंगे। ऐसा सोचना उसके या उसके प्रतिपक्षियों के लिए अभी बहुत जल्दी है।
गुरदासपुर में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सिंह सलारिया को एक लाख 93 हजार 219 वोटों से हराया है। कांग्रेस के लिए यह बड़ी जीत हो सकती है लेकिन वैसा नहीं जैसे कांग्रेस के नेता सोच रहे हैं कि इन चुनावों के नतीजों को आगामी गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों पर असर डालेंगे। हर चुनाव से निकले जनादेश की व्याख्या और विश्लेषण अलग-अलग होता है। आम तौर पर यह देखा गया है कि राज्यों में अगर कोई राजनीतिक पार्टी असरदार ढंग से सत्तारूढ़ होती है तो करीब एक-डेढ़ साल तक उसका प्रभाव मौजूद रहता है। इस फार्मूले से, गुरदासपुर में कांग्रेस की जीत को चौंकाने वाला नहीं माना जा सकता। वैसे भी एक-दो उपचुनावों के नतीजों से किसी बड़े राजनीतिक परिवर्तन का निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए। इसका यह अर्थ स्पष्ट है कि गुरदासपुर और वेंगारा उपचुनावों से भाजपा को निराशा हुई है।
गुरदासपुर में भारी अंतर पर भाजपा को मंथन करना चाहिए। फिल्म अभिनेता और भाजपा के नेता विनोद खन्ना ने कांग्रेस से यह सीट छीनी थी। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी कविता खन्ना यहां से चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं। अगर भाजपा उनको टिकट देती तो शायद नतीजा कुछ और होता क्योंकि उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर का असर होता। केरल की वेंगारा विधान सभा पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन संयुक्त लोकतांत्रिक फ्रंट की जीत से भी भाजपा को निराश है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केरल की राजनीतिक-संस्कृति में बदलाव लाने के लिए काफी समय से संघषर्शील हैं। इसी कड़ी में उनने वहां जन रक्षा यात्रा निकाल कर अपनी राजनीतिक मौजूदगी बनाने की कोशिश की थी, लेकिन इस उपचुनाव के नतीजों ने उनकी कोशिशों को नाकाम सिद्ध कर दिया है। इसलिए भाजपा को राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों से पहले अपनी कार्यशैली और राजनीति पर पुनर्विचार करना होगा। गुजरात चुनाव के नतीजे केंद्र की राजनीति को अवश्य प्रभावित कर सकता है। भाजपा के लिए गुरदासपुर सबक है, और वेंगारा कहता उसके प्रयासों में कमी है। इसी तरह कांग्रेस को भी विचार करना चाहिए यह जीत परिस्थतिजन्य हैं, इससे भावी व्यूह रचना में मदद मिल सकती है पर समर नहीं जीता जा सकता।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।