नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार किसी भी हालत में छीना नहीं जा सकता। इस तरह की कार्रवाई को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिका का मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दलित लेखक और बुद्धिजीवी कांचा इलैया की विवादास्पद किताब ‘सामाजिक स्मगलुरू कोमाटोल्लु: वैश्य सामाजिक तस्कर हैं’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर तथा डी वाई चंद्रचूड़ ने एक वकील की जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिन्होंने किताब पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी आग्रह की कड़ी समीक्षा होगी क्योंकि ‘हर लेखक को अपने विचार खुलकर व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है’ और किसी लेखक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने को हल्के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, “हम तथ्यों को विस्तार से नहीं बताना चाहते। यह कहना पर्याप्त है कि जब कोई लेखक किताब लिखता है तो यह उसके अभिव्यक्ति का अधिकार है। हमारा मानना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह उचित नहीं है कि यह अदालत किताब को प्रतिबंधित करे।
पीठ ने आगे कहा, “उक्त अधिकार की शुचिता को ध्यान में रखकर और यह भी ध्यान रखते हुए कि इस अदालत ने इसे उच्च पायदान पर रखा है, हम याचिकाकर्ता के आग्रह को ठुकराते हैं। वकील के वी वीरंजनायेलु की याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया जो आर्य वैश्य अधिकारी पेशेवर संगठन के सदस्य भी हैं। उनका आरोप है कि लेखक ने अपनी किताब में कुछ जातियों के खिलाफ आधारहीन आरोप लगाए हैं और समाज को जाति के आधार पर बांटने का प्रयास किया है।