मप्र के आधा दर्जन कर्मचारी संगठन शिवराज सरकार के खिलाफ एकजुट

Bhopal Samachar
भोपाल। समस्याएं तो सुलझाई नहीं। सिर्फ आश्वासन देते रहे। अब विरोध तो सहना पड़ेगा। प्रदेश के कर्मचारियों की लंबित मांगों का निराकरण नहीं होने से नाराज कर्मचारी संगठन प्रमुखों ने यह दो टूक बात सरकार के खिलाफ कही है। बता दें कि विधानसभा चुनाव के पहले कर्मचारी संगठन सरकार को घेरने का मन बना चुके हैं। आधा दर्जन संगठनों ने इसकी चेतावनी दे दी है। नियमितिकरण की मांग को लेकर जूझ रहे प्रदेश के संविदा कर्मचारी सबसे ज्यादा नाराज हैं। लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने तो चुनाव में सरकार को सबक सिखाने तक की चेतावनी दी है।

असल में प्रदेश के हर वर्ग के कर्मचारियों की कोई न कोई समस्या है। ढाई लाख संविदा कर्मचारी नियमितिकरण नहीं होने, कम वेतन मिलने, योजना बंद होने के बाद निकाले जाने से नाराज है। जबकि लिपिक वर्गीय कर्मचारी वेतन विसंगति से जूझ रहे हैं। अध्यापक सातवां वेतनमान से वंचित रखने और स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन नहीं करने से नाखूश है। सहकारी संघ और निगम मंडल के कर्मी राज्य के नियमित कर्मचारी की तरह सुविधाएं नहीं मिलने से नाराज है। 4600 ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी सर्वेयर से कम वेतन मिलने, रिक्त पदों पर भर्ती नहीं करने और अधिक काम कराने के कारण सरकार से नाराज हैं। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी सरकार द्वारा स्थाई कर्मी बनाने में देरी करने, कम वेतन देने से नाराज है। इतना ही नहीं करीब 1 हजार दैनिक वेतन भोगी ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर में सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं। यहां तक की सरकार को कुपोषण से लड़ने में मदद कर रही प्रदेश की दो लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं भी कम वेतन से त्रस्त होकर बार-बार आंदोलन का रास्ता अपना रही हैं।

कर्मचारी संगठन के वीरेंद्र खोंगल, जितेंद्र सिंह, भुवनेश पटेल, रमेश राठौर, एलएन शर्मा, उमाशंकर तिवारी, भरत पटेल, मनोहर दुबे का कहना है कि प्रदेश का ऐसा कोई वर्ग का कर्मचारी नहीं है जो सरकार की नीतियों से नाराज न हो। यहीं नाराजगी अब खुलकर सामने आ रही है और बार-बार आंदोलन, धरना प्रदर्शन करने पड़ रहे हैं। इन पदाधिकारियों का आरोप है कि आंदोलन शुरू होते ही सरकार के प्रतिनिधि के रूप में विधायक, मंत्री और प्रमुख सचिव सामने आते हैं और आश्वासन देकर आंदोलन स्थगित कराने के बाद निराकरण कराना भूल जाते हैें। सालों से कर्मचारी वर्ग इन्हीं आश्वासनों से ठगा आ रहा है। अब बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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