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कुल मिलाकर सात छात्र सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया था। हालांकि, स्कूल ने कहा कि वह तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिए गए एक सर्कुलर का पालन कर रहा था। सेतुरमन ने जोर देकर कहा कि स्कूल की इस कार्रवाई से उन्हें मानसिक पीड़ा हुई है। इस मामले में तमिलनाडु शिक्षा विभाग ने जांच का आदेश दिया है। मामले के सामने आने के बाद सोशल मीडिया में कई यूजर्स ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
वैसे यह पहला मामला नहीं है, जब किसी इसाई स्कूल में इस तरह की घटना सामने आई हो। इससे पहले कई ईसाई स्कूलों ने हिंदू छात्र-छात्राओं को घर पर उनकी संस्कृति और अनुष्ठानों का पालन करने के लिए सजा दी गई है। इसी तरह का एक मामला हैदराबाद में साल 2015 में सामने आया था, जब दशहरे के मौके पर मेहंदी लगाने पर कई लड़कियों को सजा दी गई थी।
तमिलनाडु के रामेश्वरम में सेंट जोसेफ स्कूल ने सबरीमलई तीर्थयात्रा के लिए तैयारी में लगे दो लड़कों को को माथे पर विभूती (पवित्र राख) लगाने के लिए निलंबित कर दिया गया था। यह आश्चर्य की बात है कि इन ईसाई स्कूलों में से अधिकांश को सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। फिर भी वे स्वदेशी संस्कृति से नफरत करने के लिए बच्चों को तैयार करने के हर संभव प्रयास करते हैं।