राकेश दुबे@प्रतिदिन। राजस्थान में भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने वाला अध्यादेश/कानून ऊंट की तरह विधानसभा और उच्च न्यायलय में खड़ा हो गया है। इस ऊंट की पानी की थैली में भरा पानी प्यास, भले ही न बुझा पाए पर दाग नही लगने देगा, इस बात की गारंटी वसुंधरा सरकार की है। अब तो जिसने सरकार की मर्जी के बगैर दाग दिखाए उसकी शामत आना तय है। इस अध्यादेश से राजस्थान सरकार ने जजों, पूर्व जजों और मजिस्ट्रेटों समेत अपने सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान लिए गए फैसलों पर सुरक्षा प्रदान करने जो अध्यादेश निकाला था अब वह विधान सभा में भारी हंगामे में पेश हो चुका है और उच्च न्यायालय में चुनौती के रूप में भी पेश भी किया जा चुका है।
इस विधेयक क्रिमिनल लॉज (राजस्था न अमेंडमेंट) 2017 के मुताबिक कोई भी मजिस्ट्रेट किसी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ जांच के आदेश तब तक नहीं जारी कर सकता जब तक संबंधित अथॉरिटी से इसकी इजाजत न ली गई हो। इजाजत की अवधि 180 दिन तय की गई है जिसके बाद मान लिया जाएगा कि यह मिल चुकी है। अध्यादेश में इससे भी आला दर्जे की बात यह है कि जांच की इजाजत मिलने से पहले शिकायत में दर्ज गड़बड़ियों को लेकर मीडिया में किसी तरह की खबर नहीं छापी जा सकती।
यह सही है कि इस अध्यादेश पर अमल के बाद शिकायत को हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल देने की गुंजाइश नहीं बचेगी। लेकिन यह साफ नहीं है कि किसी मामले में संबंधित अधिकारियों ने शिकायत लेने से ही मना कर दिया तो क्या होगा? इसके अलावा, 6 महीने विचार करने के बाद अगर इन अधिकारियों ने शिकायत को जांच करने लायक नहीं माना तो फिर उस शिकायत का क्या होगा? क्या उसके बाद संबंधित अथॉरिटी के फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी? और तब भी उसके बारे में खबर छापने की इजाजत मीडिया को होगी या नहीं? और यदि शिकायत झूठी पाई गई तो क्या कार्रवाई होगी ?
ऐसे सवालों को एक तरफ रखकर इस पर नजर डालें तो आने जा रहा थ नया कानून भूतपूर्व और वर्तमान लोकसेवकों के काले कारनामों का कवच होगा। लोकतंत्र में ऐसे किसी प्रावधान के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता जो सरकारी अधिकारियों के ड्यूटी के दौरान लिए गए फैसलों और उनकी व्यावहारिक परिणति को लेकर सरकार खबरें देने पर रोक लगा दे। ऐसी किसी खबर की गुंजाइश अगर बनी तो वह अपराध हो जायेगा। देश में भ्रष्टाचार के सवाल पर व्यापक आंदोलन हुए है और अभी कई जगह सुगबुगाहट जारी है।
यही भाजपा विपक्ष में बैठ कर भी राजनीति और सरकार में पारदर्शिता की वकालत कर रही थी,लेकिन आज हालत यह है कि केंद्र सरकार लोकपाल की नियुक्ति से कन्नी काट रही है। राजस्थान में सरकारी भ्रष्टाचार की खबर छापने तक पर रोक लगा रही है। अगर बीजेपी को लोकतंत्र और सुशासन से जुड़े अपने वादे जरा भी याद हों तो उसे राजस्थान सरकार को तत्काल यह अध्यादेश वापस लेने के लिए कहना चाहिए और इसी तर्ज़ मध्यप्रदेश में जो सोचा जा रहा है उस पर विराम लगाना चाहिए। भ्रष्ट लोकसेवकों को दंड और निष्ठापूर्वक देश हित में लगे या निवृत हुए लोकसेवकों को संरक्षण देना चाहिए। ऊंट सदन और अदालत में खड़ा है, करवट की प्रतीक्षा की कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।