जयपुर। राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने अध्यादेश जारी कर किसी भी जज, मजिस्ट्रेट अथवा सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों के खिलाफ सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी तरह की जांच नहीं हो सकेगी। अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि कोई भी लोकसेवक अपनी ड्यृटी के दौरान किए गए जांच के दायरे में नहीं आ सकेगा। हालाकिं कोड आॅफ क्रिमिनल प्रोसिजर 197 के तहत अवश्य जांच का प्रावधान किया गया है।
इधर सोमवार से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा के सत्र से पांच दिन पूर्व इस तरह का अध्यादेश लाए जाने को लेकर सरकार पर सवाल उठने लगे है। अध्यादेश में लिया गया है कि चूंकि विधानसभा सत्र नहीं चल रहा,लिहाजा अध्यादेश लाना आवश्यक है,इसे विधानसभा सत्र में कानून बनाने के लिए पेश किया जाएगा। अध्यादेश लाए जाने पर आपत्ति जताने वालों का कहना है कि जब कुछ दिन बाद विधानसभा सत्र शुरू ही हो रहा था,तो इस तरह का अध्यादेश लाए जाने की क्या आवश्यक्ता थी। पांच दिन पूर्व अध्यादेश लाया गया और अब विधानसभा सत्र में इसे कानूनी जामा पहनाया जाएगा। अध्यादेश लाए जाने पर उठ रहे सवालों के बीच संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द् राठौड़ ने शनिवार को सफाई देते हुए कहा कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ इस्तगासे के माध्यम से झूंठी शिकायतों की बाढ़ आ गई है,जिससे अधिकारी विकास के काम नहीं कर पा रहे है। उन्होंने कहा कि इस तरह के अध्यादेश का मकसद अफसरों को बदनाम करने से रोकना है।
अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ सरकार की बना मंजूरी के एफआईआर भी दर्ज नहीं हो सकेगी। किसी भी अधिकारी अथवा कर्मचारी के खिलाफ कोई भी कोर्ट नहीं जा सकेगा। अध्यादेश में कहा गया है कि सरकार के स्तर पर अधिकारी को 180 दिन के भीतर जांच की इजाजत देनी होगी,यिद 180 दिन के भीतर जांच की इजाजत नहीं दी जाती है तो इसी स्वत:ही स्वीकृत मान लिया जाएगा। इसके साथ ही किसी भी जज,मजिस्ट्रेट,अधिकारी अथवा कर्मचारी का नाम और पहचान मीडिया तब तक जारी नहीं कर सकता जब तक सरकार के सक्षम अधिकारी इसकी इजाजत नहीं देते हैं।
क्रमिनल लॉ अमेंडमेंट आर्डिनेंस 2017 में मीड़िया में अफसरों को लेकर कोई भी समाचार लिखने पर रोक लगाई गई है। सरकार द्वारा यह अध्यदेश लाए जाने के खिलाफ कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दल और सामाजिक संगठन सक्रिय हो गए। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी का कहना है कि इस मामले को लेकर सरकार को विधानसभा में घेराव किया जाएगा। यह एक तरह से मीड़िया पर अघोषित रोक लगाने जैसा कदम है। प्रदेश कांग्रेस की मीडिया चेयरमैन ने इसे काला कानून बताते हुए कहा कि कांग्रेस इसका विरोध करेगी। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को लेकर विधानसभा के बार धरने की योजना बनाई है।