जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अपील का इस निर्देश के साथ निराकरण कर दिया कि यदि किसी संज्ञेय अपराध की शिकायत पर संबंधित थाने की पुलिस एफआईआर रजिस्टर्ड नहीं कर रही है, तो हाईकोर्ट पुलिस को सीधे तौर पर एफआईआर रजिस्टर्ड करने निर्देश नहीं दे सकता।ऐसा इसलिए भी क्योंकि प्रभावित पक्ष के पास अदालत में परिवाद दायर करने का विकल्प मौजूद है। लिहाजा, पूर्व में सिंगल बेंच द्वारा पारित आदेश बहाल रखते हुए डिवीजन बेंच में दायर अपील खारिज की जाती है।
मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजयकुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान अपीलकर्ता जबलपुर निवासी पार्षद धर्मेन्द्र सोनकर की ओर से अधिवक्ता अहादुल्ला उस्मानी ने पक्ष रखा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का हवाला देकर हाईकोर्ट द्वारा पुलिस को एफआईआर के लिए निर्देश दिए जाने पर बल दिया।
इस पर राज्य की ओर से शासकीय अधिवक्ता अमित सेठ ने विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि यदि पुलिस एफआईआर दर्ज न करे तो परिवाद दायर करने की स्वतंत्रता का लाभ उठाया जा सकता है। जब संवैधानिक दृष्टि से उचित व्यवस्था दी गई है तो फिर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के विधिसम्मत आदेश को चुनौती देना सर्वथा अनुचित है।
बिना सर्च वारंट कैसे की कार्रवाई
इधर पार्षद धर्मेन्द्र सोनकर ने साफ किया है कि वे पुलिस के अनुचित रवैये के खिलाफ की गई शिकायत को गंभीरता से न लिए जाने के इस मामले में हाईकोर्ट की सिंगल व डिवीजन बेंच ने इंसाफ न मिलने से निराश नहीं हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक इंसाफ की मांग की जाएगी। पुलिस ने जिस तरीके से बिना सर्च वारंट के अनुचित कार्रवाई को अंजाम दिया, वह सीधेतौर पर दुर्भावना और राजनीतिक दबाव से उत्प्रेरित कार्रवाई थी।
ऐसे में एफआईआर दर्ज न किया जाना सर्वथा अनुचित है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने मांग की गई थी कि वह एफआईआर के निर्देश दे। जब ऐसा नहीं किया गया तो डीबी गए लेकिन मूल मांग अब तक जस की तस है। लिहाजा, परिवाद के विकल्प के अलावा सुप्रीम कोर्ट तक आवाज उठाई जाएगी।